Ticker

10/recent/ticker-posts

क्या तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी अनुच्छेद 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार है? सुप्रीम कोर्ट की पूछताछ

 

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि 1986 का कानून गुजारा भत्ते के मामले में मुस्लिम महिलाओं के लिए ज्यादा फायदेमंद बताया है,






 नई दिल्ली (एजेंसियां) सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर इस पहलू पर विचार करने की इच्छा जताई है कि क्या तलाकशुदा मुस्लिम महिला को भी सीआरपीसी की धारा 135 के तहत अपने पति से तलाक लेने का अधिकार है।गुज़ारा भत्ता की मांग? गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मशहूर मुहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि सीआरपीसी की धारा 125 एक धर्मनिरपेक्ष धारा है, यह मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होती है. हाल ही के एक मामले में, तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता देने के पारिवारिक न्यायालय के निर्देश के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस पहलू पर विचार करने की इच्छा व्यक्त की कि क्या मुस्लिम तलाकशुदा महिला भी सीआरपीसी के तहत गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। धारा 125 के तहत उसका पति? सुप्रीम कोर्ट इस बात पर भी विचार करेगा कि इस मामले में सीआरपीसी या मुस्लिम पर्सनल लॉ (मुस्लिम महिला अधिनियम 1986) लागू होगा या नहीं. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट





एसेक्स क्यूरी रुक गया है,

एक मुस्लिम व्यक्ति अपनी तलाकशुदा पत्नी से गुजारा भत्ता के कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाले मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति बीवी नागरता और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने की। पहली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट कानून के इस सवाल पर विचार करने के लिए सहमत हो गया कि क्या कोई मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर कर सकती है।





आरपी बनाए रखने का अधिकार सुरक्षित रखता है।

फैमिली कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए निर्देश दिया था कि पति अपनी तलाकशुदा पत्नी को 20 हजार रुपये प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण भत्ता दे.फैमिली कोर्ट के इस निर्देश को तेलंगाना हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि दोनों पक्षों का मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक 2017 में तलाक हो गया था. उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि उनके पास तलाक का सर्टिफिकेट भी है लेकिन फैमिली कोर्ट ने इस पर विचार नहीं किया. इसके बाद उच्च न्यायालय ने अंतरिम भरण-पोषण भत्ता देने के आदेश को रद्द नहीं किया, बल्कि देय राशि 20,000 रुपये तय कर दी।





से घटाकर 1000 रूपये प्रति माह कर दिया गया। याचिकाकर्ता-पति ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन दायर करने की हकदार नहीं है, उसे मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 के तहत आगे बढ़ना होगा। इसमें यह भी कहा गया कि गुजारा भत्ता को लेकर 1986 का कानून मुस्लिम महिलाओं के लिए ज्यादा फायदेमंद है. याचिकाकर्ता ने अदालत को यह भी बताया कि उसने अपनी तलाकशुदा पत्नी को ईद के दौरान भरण-पोषण के रूप में दिया था,15 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता था।

टिप्पणियाँ

Disqus Shortname

sigma-2

Comments system

[blogger][disqus][facebook]

Archive Pages Design$type=blogging$count=7

About Me

Duis autem vel eum iriure dolor in hendrerit in vulputate velit esse molestie consequat, vel illum dolore eu feugiat nulla facilisis at vero eros et accumsan et iusto odio dignissim qui blandit praesent luptatum zzril delenit augue duis.
Read More