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ईरान से कम नहीं होगा हमारा हमला. इराक


ईरान से  कम नहीं होगा हमारा हमला. इराक 








बगदाद. अमेरिकी (America) हवाई हमले में ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी (Qasem Soleimani) की मौत के बाद दोनों देशों में तनाव बढ़ा हुआ है. ईरान ने बुधवार को अमेरिकी एयरबेस पर मिसाइल दाग कर 80 से ज्यादा अमेरिकी सैनिकों मारा गिराया. ईरान (Iran) के हमले के बाद अब इराक (Iraq) ने अमेरिका पर हमले चेतावनी दी है. इराक ने कहा कि उसका हमला ईरान से कम नहीं होगा.

इराक के हशद अल शाबी अर्द्धसैन्य नेटवर्क के एक शीर्ष कमांडर ने बुधवार को कहा कि अमेरिकी हमले में उसके सेना उप प्रमुख के मारे जाने के बाद अब ‘इराक की ओर से जवाब’ देने का समय आ गया है. कट्टरपंथी हशद के कमांडर कैश अल खजाली ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘यह जवाब ईरानी जवाब से कुछ कम नहीं होगा. इसका वादा है.’

मारे गए 80 अमेरिकी सैनिक
ईरान ने पिछले सप्ताह अमेरिकी ड्रोन हमले के जवाब में बुधवार तड़के अमेरिकी सैनिकों के इराकी ठिकाने पर मिसाइलें दागी.  ईरान प्रेस टीवी की रिपोर्ट मुताबिक, इस मिसाइल अटैक में अमेरिका के 80 सैनिकों की मौत हो गई, जबकि 200 से भी ज्यादा बुरी तरह घायल हो गए. हालांकि, ईरान के इन दावों की अमेरिका ने अभी तक कोई पुष्टि नहीं की है.

ईरान बोला- अभी ये शुरूआत
ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद जरीफ ने कहा, 'यह तो अभी शुरुआत है, हमने यह कदम सिर्फ अपनी आत्मरक्षा के लिए उठाया है. अमेरिका ने अगर कोई भी कार्रवाई की तो हम और बड़ा हमला कर सकते हैं.' ईरान के सरकारी टेलीविजन ने कहा कि ये हमले अमेरिका के ड्रोन हमले में शुक्रवार को ईरानी सेना के कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी के मारे जाने का बदला लेने के लिए किए गए. सुलेमानी को मारने का आदेश अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दिया था.

ईरान ने दांगी 22 मिसाइलें
आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय गठबंधन के हिस्से के रूप में लगभग पांच हजार अमेरिकी सैनिक इराक में तैनात हैं. इराकी सेना ने एक बयान में कहा कि अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर कुल 22 मिसाइलें गिरीं, लेकिन इराकी बलों का कोई कर्मी हताहत नहीं हुआ है.

ट्रंप बोले- ऑल इज वेल
ईरान के मिसाइल हमलों के कुछ देर बाद  अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट किया, ‘‘सब ठीक है. इराक स्थित दो सैन्य (अमेरिकी) ठिकानों पर ईरान से मिसाइलें दागी गईं. नुकसान और हताहत होने का आकलन किया जा रहा है. अब तक सब ठीक है. दुनिया में कहीं भी हमारे पास सर्वाधिक शक्तिशाली और सर्वसाधनयुक्त सेना है. मैं कल सुबह बयान दूंगा.’

‘अमेरिका के मुंह पर तमाचा’
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खमनेई ने कहा कि हमले अमेरिका के ‘चेहरे पर तमाचा’ हैं. उन्होंने सरकारी टेलीविजन पर प्रसारित भाषण में कहा, ‘‘कल रात, चेहरे पर एक तमाचा लगा.’ खामनेई के बयान के बाद ईरानी सेना ने भी एक बयान जारी कर कहा है कि अगर अमेरिकी सेना हमारे मिसाइल हमले का जवाब देने की कोशिश भी की तो हम एक और बड़ा हमला करने से पीछे नहीं हटेंगे

इराक की युद्ध की आग भड़की तो सबसे पहले अमेरिका जलेगा : हिज़्बुल्लाह

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इराक की युद्ध की आग भड़की तो सबसे पहले अमेरिका जलेगा : हिज़्बुल्लाह

हिज़्बुल्लाह ने कहा कि अगर ऐसी कोई स्थिति उत्पन्न होती है तो देश का कोई भाग सुरक्षित नहीं रहेगा और इस आग में सबसे पहले जिसे जलना है वह अमेरिकी और सद्दाम और बॉथ के वफादार तथा उपद्रवी और हिंसा फैला रहे उन्मादी लोग हैं ।
विलायत पोर्टल : प्राप्त जानकारी के अनुसार इराक में आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में प्रभावशाली भूमिका निभाने वाले सशस्त्र दल हिज़्बुल्लाह इराक ने देश में जारी  संकट में अमेरिका और उसके पिछलग्गू देशों की नकारात्मक भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा कि अगर देश इसी तरह अराजकता का शिकार रहा और गृहयुद्ध की ओर बढ़ता है तो फिर लॉजिक और तार्किक वार्ता तथा न्याय का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा और ना ही यह बातें प्रभावी हो पाएंगी ।
हिज़्बुल्लाह ने कहा कि अगर ऐसी कोई स्थिति उत्पन्न होती है तो देश का कोई भाग सुरक्षित नहीं रहेगा और इस आग में सबसे पहले जिसे जलना है वह अमेरिकी और सद्दाम और बॉथ के वफादार तथा उपद्रवी और हिंसा फैला रहे उन्मादी लोग हैं ।
याद रहे कि कल रात नजफ़ में स्थित ईरानी वाणिज्य दूतावास को नकाबपोश लोगों ने हमलों का निशाना बनाया था, जिसे इराक में प्रतिबंधित सऊदी अरब के अल अरेबिया चैनल ने लाइव प्रसारित किया था ।

**सारे इंसानों से अच्छा सुलूक


**सारे इंसानों से अच्छा सुलूक
अहलेबैत अ.स. हमेशा अपने शियों को दूसरे इस्लामी फ़िरक़ों की पैरवी करने वालों के साथ अच्छा रवैया बरतने की बात करते थे, और उनकी ख़ुद की सीरत भी इसी तरह थी, इमाम मोहम्मद बाक़िर अ.स. ने फ़रमाया: अगर कहीं पर तुम्हारा साथ यहूदी के साथ हो जाए तो उससे भी अच्छा बर्ताव करो, इसी तरह इमाम अली अ.स. अपनी ज़िंदगी में सभी अहले किताब चाहे यहूदी हों या ईसाई सबके साथ अच्छा व्यवहार करते थे, जिसका नतीजा कभी कभी यह होता था कि बहुत सारे यहूदी और ईसाई आपका बर्ताव देख कर इस्लाम क़बूल कर लेते थे, अगर कोई शख़्स अहलेबैत अ.स. के दूसरे मज़हब के साथ सुलूक पर रिसर्च करना चाहे तो अच्छी ख़ासी किताबें तैयार हो सकती हैं। 
क़ुरआन और अहलेबैत अ.स. की तालीमात के मुताबिक़ एक मुसलमान को सारे इंसानों के साथ अच्छा और व्यवहार करना चाहिए और एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए इसलिए कि क़ुरआन में साफ़ शब्दों में हुक्म है कि "इंसानों से नर्म रवैये से बात करो" 
(सूरए बक़रह, आयत 83)।
अल्लाह ने इस आयत में यह नहीं कहा केवल मोमेनीन से या केवल मुसलमानों से नर्म लहजे और अच्छे रवैये से बात करो बल्कि जिस शब्द का इस्तेमाल किया है उसमें शिया, सुन्नी, हिंदू, यहूदी, ईसाई, सिख सभी धर्म और जाति के लोग शामिल हैं। 
इस आयत के बारे में इमाम मोहम्मद बाक़िर अ.स. फ़रमाते हैं कि: आयत का मतलब यह है कि तुम जिस तरह और जिस लहजे में चाहते हो लोग तुमसे बात करें तुम भी उसी लहजे में बात करो और वैसा ही व्यवहार करो। 
इसी तरह इमाम सादिक़ अ.स. ने फ़रमाया: हमारे लिए इज़्ज़त और सम्मान का कारण बनो अपमान और ज़िल्लत का नहीं, लोगों से अच्छे और नर्म लहजे में बातें करो और अपनी ज़ुबान को बुरी बातों से बचाओ और बेहूदा और फ़ुज़ूल की बातों से बचो।
अहलेबैत अ.स. ने शियों को अहले सुन्नत के साथ विशेष तौर पर तक़वा का ख़्याल रखने की वसीयत की है, आप फ़रमाते हैं कि: "उनके बीमारों की अयादत के लिए जाओ, उनके जनाज़े में शामिल हो, उनकी मस्जिदों में उनके साथ नमाज़ अदा करो" ख़ुद अहलेबैत अ.स. का उनकी अपनी ज़िंदगी में यही तरीक़ा रहा है, एक हदीस में यह भी है कि जो भी इस तरीक़े पर अमल न करे अहलेबैत अ.स. उससे उससे दूरी बना लेते हैं और उसे अपना शिया नहीं मानते।
एक सहीह हदीस में इमाम सादिक़ अ.स. से नक़्ल हुआ है कि जो शख़्स इत्तेहाद की ख़ातिर अहले सुन्नत की पहली सफ़ में खड़े होकर नमाज़ अदा करे वह उस शख़्स की तरह है जिसने पैग़म्बर स.अ. के पीछे नमाज़ अदा की हो, इस रिवायत से ज़ाहिर है कि अहले सुन्नत के साथ नमाज़ अदा करना न केवल जाएज़ है बल्कि बहुत ज़्यादा सवाब भी रखता है, और भी इस तरह की कई रिवायतें हैं जिनकी बुनियाद पर हमारे मराजे ने फ़तवे दिए हैं।
दूसरों के मुक़द्दसात को बुरा भला कहने से मना करना
इस बात का तजुर्बा किया जा चुका है कि दूसरों के मुक़द्दसात को बुरा भला कह कर उन्हें गाली देकर गुमराहों की कभी भी न केवल हिदायत नहीं हुई बल्कि उनके अंदर ज़िद पैदा हो गई है और उसके बाद वह विरोध पर उतर आए हैं, इसी वजह से अहलेबैत अ.स. अपने शियों को याद दिलाते थे कि अल्लाह ने उसके न मानने वालों को भी गाली देने और बुरा भला कहने से मना किया है जैसाकि क़ुरआन में इरशाद है कि: "उन लोगों के ख़ुदाओं को जो अल्लाह के अलावा किसी और को अपना ख़ुदा मानते हैं उन्हें गाली मत दो, कहीं ऐसा न हो वह तुम्हारे ख़ुदा को अनजाने में गाली दे बैठें"। (सूरए अनआम, आयत 108)
इसलिए गाली और बुरा भला कहने से बचना क़ुरआनी और इस्लामी उसूल है जिस पर पैग़म्बर स.अ. और अहलेबैत अ.स. ने बहुत ताकीद की है।
सिफ़्फ़ीन की जंग में इमाम अली अ.स. के चाहने वालों ने अपने मुक़ाबले पर जंग करने वालों को गाली दी तब आपने फ़रमाया: मैं इस बात को सही और मुनासिब नहीं समझता कि अपने दुश्मन को गालियां या बद दुआ देने वाले बन जाओ, उन्हें बुरा भला कहो या उनसे नफ़रत करने वाले बन जाओ, लेकिन अगर कोई इंसानियत के विरुद्ध काम करे या नैतिक मूल्यों को रौंद डाले तो उसकी उस बुराई को सबके सामने बयान कर सकते हो।
इसलिए बुरा भला न कहने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है वह इंसान जिसकी नज़र में इंसानियत की कोई क़ीमत न हो या वह वह इंसान जिसके नज़दीक नैतिकता का कोई सम्मान न हो उसकी इस हरकत पर भी चुप रहो, नहीं! उसकी इस हरकत को सारी दुनिया के सामने ज़ाहिर करना ज़रूरी है।
एक और रिवायत में शियों को पैग़ाम दिया गया है कि: अल्लाह को हमेशा ध्यान में रखो और जिसके साथ भी दोस्ती करो उसके साथ अच्छे रवैये से पेश आओ, पड़ोसियों का ख़्याल रखो और अमानत को उसके मालिक तक पहुंचाओ, लोगों को सुवर मत कहो, अगर हमारे चाहने वाले और हमारे शिया हो तो जैसे हम बातचीत करते हैं जैसा हमारा रवैया है वैसा ही अपनाओ ताकि हक़ीक़त में हमारे शिया कहलाओ।
इन रिवायतों से साफ़ ज़ाहिर है कि उस दौर में कुछ लोग ऐसे थे जो दूसरे मज़हब और दूसरे धर्म के मानने वालों को बुरा भला कहते थे और उनके साथ बुरा व्यवहार करते थे, पैग़म्बर स.अ. और अहलेबैत अ.स. ने इस हरकत का कड़े शब्दों में विरोध करते हुए आपसी भाईचारे को बाक़ी रखने का हुक्म दिया है

इमाम हसन असकरी अ.स. की ज़िंदगी पर एकनिगाह




इमाम हसन असकरी अ.स. की ज़िंदगी पर एकनिगाह 

शियों के गयारहवें इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए, चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए


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विलायत पोर्टल: हमेशा से यह सुन्नत रही है कि ऐसे बुज़ुर्गों की ज़िंदगी और उनके किरदार ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है जिनमें इंसानी पहलू मौजूद रहा हो, उनमें अल्लाह के भेजे हुए नबी और अलवी मकतब के रहनुमा वह ऐसे लोग हैं जो अल्लाह की ओर से सारे इंसानों के लिए बेहतरीन आइडियल बनाए गए हैं।
शियों के गयारहवें इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए, चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।
इमाम हसन असकरी अ.स. की रणनीति
इमाम हसन असकरी अ.स. ने हर तरह के दबाव और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद दीन की हिफ़ाज़त और इस्लाम विरोधी विचारधारा का मुक़ाबला करने के लिए अनेक राजनीतिक, सामाजिक और इल्मी कोशिशें अंजाम देते रहे और अब्बासी हुकूमत की इस्लाम की नाबूदी की साज़िश को नाकाम कर दिया, आपकी इमामत के दौरान कुछ अहम रणनीतियां इस तरह थीं......
इस्लाम की हिफ़ाज़त के लिए इल्मी कोशिशें, विरोधियों के कटाक्ष का जवाब, हक़ीक़ी इस्लाम और सही विचारधारा का प्रचार, ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम, शियों की विशेष कर क़रीबी साथियों की जो हर तरह का ख़तरा मोल ले कर हर समय इमाम अ.स. के इर्द गिर्द रहते थे उनकी माली मदद करना, कठिनाईयों से निपटने के लिए बुज़ुर्ग शियों का हौसला बढ़ाना और उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को मज़बूत करना, शियों के अक़ीदों और इमामत का इंकार करने वालों के लिए इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करना और अपने बेटे इमाम महदी अ.स. की ग़ैबत के लिए शियों की फ़िक्र को तैयार करना।
इल्मी कोशिशें
हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में हालात की ख़राबी और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी पाबंदियों की वजह से आप समाज में अपने इलाही इल्म को नहीं फैला सके लेकिन इन सब पाबंदियों के बावजूद ऐसे शागिर्दों की तरबियत की जिनमें से हर एक अपने तौर पर इस्लामी मआरिफ़ और इमाम अ.स. के इल्म को लोगों तक पहुंचाने में अहम रोल निभाता रहा, शैख़ तूसी र.ह. ने आपके शागिर्दों की तादाद सौ से ज़्यादा नक़्ल की है, जिनमें अहमद इब्ने इसहाक़ क़ुम्मी, उस्मान इब्ने सईद और अली इब्ने जाफ़र जैसे बुज़ुर्ग शिया उलमा शामिल हैं, कभी कभी मुसलमानों और शियों के लिए ऐसी मुश्किलें और कठिनाईयां पेश आ जाती थीं कि उन्हें केवल इमाम हसन असकरी अ.स. ही हल कर सकते थे, ऐसे मौक़ों पर इमाम अ.स. अपने इमामत के इल्म और हैरान कर देने वाली तदबीरों से कठिन से कठिन मुश्किल को हल कर दिया करते थे।
शियों का आपसी संपर्क
इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में अनेक इलाक़ों और कई शहरों में शिया फैल चुके थे और कई इलाक़ों में अच्छी ख़ासी तादाद में थे जैसे कूफ़ा, बग़दाद, नेशापुर, क़ुम, मदाएन, ख़ुरासान, यमन और सामर्रा शियों के बुनियादी मरकज़ में से थे, शिया इलाक़ों का इस तरह तेज़ी से फैलने और कई इलाक़ों में शियों का अच्छी ख़ासी तादाद में होने को देखते हुए ज़रूरी था कि उनके बीच आपस में एक दूसरे से संपर्क बनाए रहें ताकि उनकी दीनी और सियासी रहनुमाई हो सके और उन सभी को एक साथ मंज़िल तक पहुंचाया जा सके, यह ज़रूरत इमाम मोहम्मद तक़ी अ.स. के दौर ही से महसूस हो रही थी और वकालत से संबंधित सिस्टम को ईजाद कर के और अलग अलग इलाकों में वकीलों को भेज कर इस काम को शुरू किया जा चुका था, इमाम हसन असकरी अ.स. ने भी इसी को जारी रखा, जैसाकि तारीख़ी हवाले से यह बात साबित है कि आपने शियों के अहम और बुज़ुर्ग लोगों में से अपने वकीलों को चुन कर उनको अलग अलग इलाक़ों में भेज दिया।
ख़त और दूत (क़ासिद) का सिलसिला
वकालत का सिस्टम क़ायम करने के अलावा इमाम हसन असकरी अ.स. अपने सफ़ीर और क़ासिद को भेज कर भी अपने शियों और मानने वालों से संपंर्क करते थे और इस तरह उनकी मुश्किलों को दूर करते थे, अबुल अदयान (जोकि आपके क़रीबी सहाबी थे) के काम उन्हीं कोशिशों का नतीजा हैं, वह इमाम के ख़तों को आपके शियों तक पहुंचाते और उनके ख़तों, सवालों, मुश्किलों, ख़ुम्स और दूसरे माल शियों से लेकर सामर्रा में इमाम अ.स. तक पहुंचाते थे।
क़ासिद और दूत के अलावा इमाम अ.स. ख़तों द्वारा भी अपने शियों से संपर्क में रहते थे और उनकी अपने ख़तों से हिदायत करते थे, इसकी मिसाल इमाम अ.स. का वह ख़त है जो आपने इब्ने बाबवैह र.ह. (शैख़ सदूक़ र.ह. के वालिद) को लिखा था, इसके अलावा इमाम अ.स. ने क़ुम और आवह के शियों को भी ख़त लिखे थे जिनका मज़मून शिया किताबों में मौजूद है।
ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम
इमाम हसन असकरी अ.स. सारी पाबंदियों और हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद कुछ ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम उठा कर शियों की रहनुमाई करते रहते थे, और आपके यह राजनीतिक क़दम दरबारी जासूसों से इसलिए छिपे रहते थे क्योंकि आप बहुत ही सूझबूझ से वह क़दम उठाते थे, जैसे आपके बहुत क़रीबी सहाबी उस्मान इब्ने सईद का तेल की दुकान की आड़ में इमाम अ.स. का पैग़ाम शियों तक पहुंचाना, इमाम हसन असकरी अ.स. के शिया जो भी चीज़ या माल इमाम अ.स. तक पहुंचाना चाहते थे वह उस्मान को दे दिया करते थे और वह यह चीज़ें घी के डिब्बों और तेल की मश्कों में छिपा कर इमाम अ.स. तक पहुंचा दिया करते थे, इमाम अ.स. की कड़ी निगरानी के बावजूद दुश्मन की नाक के नीचे ऐसी बहादुरी वाले क़दम उठाने की वजह से आपकी 6 साल की इमामत अब्बासियों के ख़तरनाक क़ैदख़ानों में गुज़री।
शियों की माली मदद
आपका एक और अहम क़दम शियों की विशेष कर क़रीबी असहाब की माली मदद करना था, इमाम अ.स. के कुछ असहाब माली मुश्किल लेकर आते थे और आप उनकी मुश्किल को दूर करते थे, आपके इस अमल की वजह से वह लोग माली परेशानियों से घबरा कर हुकूमती और दरबारी इदारों की ओर आकर्षित होने से बच जाते थे।
इस बारे में अबू हाशिम जाफ़री कहते हैं कि मैं आर्थिक तंगी से गुज़र रहा था, मैंने सोंचा कि एक ख़त द्वारा अपने हाल को इमाम हसन असकरी अ.स. तक पहुंचाऊं, लेकिन मुझे शर्म आई और मैंने अपना इरादा बदल दिया, जब मैं घर पहुंचा तो देखा कि इमाम अ.स. ने मेरे लिए 100 दीनार भेजे हुए हैं और एक ख़त भी लिखा है कि जब कभी तुम्हें ज़रूरत हो तो शर्माना नहीं, हमसे मांग लेना इंशा अल्लाह तुम्हारी मुश्किल दूर हो जाएगी।
बुज़ुर्ग शियों और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करना
इमाम हसन असकरी अ.स. की एक बहुत अहम राजनीतिक गतिविधि यह थी कि आप शियों के अज़ीम मक़सद को हासिल करने की राह में आने वाली तकलीफ़ों और अब्बासी हाकिमों की साज़िशों का मुक़ाबला करने के लिए शिया बुज़ुर्गों की सियासी हवाले से तरबियत करते और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करते थे, चूंकि शिया बुज़ुर्ग शख़्सियतों पर हुकूमत का सख़्त दबाव होता था इसलिए इमाम अ.स. हर एक को उसके विचारों और उसकी फ़िक्र के हिसाब से उसका हौसला बढ़ाते और उनकी रहनुमाई करते थे ताकि कठिन समय में उनका सब्र और हौसला बना रहे और वह अपनी राजनीतिक ज़िम्मेदारियों को सही तरीक़े से निभा सकें, इस हवाले से इमाम अ.स. ने जो ख़त अली इब्ने हुसैन इब्ने बाबवैह क़ुम्मी र.ह. को लिखा उसमें फ़रमाते हैं कि हमारे शिया कठिन दौर से गुज़रेंगे यहां तक कि मेरा बेटा ज़ुहूर करेगा, यही मेरा वह बेटा होगा जिसके बारे में अल्लाह के रसूल ने बशारत दी है कि वह ज़मीन को अदालत और इंसाफ़ से इस तरह भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म और अत्याचार से भरी होगी।
इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल
हमारे सभी इमाम अल्लाह से संपंर्क में रहने की वजह से इल्मे ग़ैब रखते थे और ऐसे हालात में जब इस्लाम की सच्चाई या मुसलमानों के सामाजिक फ़ायदे ख़तरे में पड़ जाएं तो उस समय उस इल्म का इस्तेमाल करते थे, हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. की ज़िंदगी को अगर देखा जाए तो यह बात अच्छी तरह सामने आ जाएगी कि आपने दूसरे इमामों को देखते हुए इल्मे ग़ैब का ज़्यादा इज़हार किया है, और उसकी सीधी वजह उस दौर के भयानक हालात और ख़तरनाक माहौल था, क्योंकि जबसे आपके वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. को सामर्रा ले जाया गया तबसे आप कड़ी निगरानी में थे, अब्बासी हुकूमत की सख़्तियों और निगरानी की वजह से हालात ऐसे हो गए थे कि आप अपने बाद आने वाले इमाम अ.स. को खुल कर नहीं पहचनवा पा रहे थे, जिसकी वजह से कुछ शियों के दिलों में शक बैठने लगा था, इमाम अ.स. उन शक और मन की शंकाओं को दूर करने और उस दौर के ख़तरों से अपने असहाब को बचाने के लिए और गुमराहों की हिदायत करने के लिए आप इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करते हुए ग़ैब की ख़बरें दिया करते थे।
इस्लामी तालीमात की हिफ़ाज़त
हुकूमतों द्वारा इमामों का आम मुसलमानों से संपंर्क न बनाने देने के पीछे का राज़ यह है कि कुछ हाकिम चाहते थे कि इस्लामी ख़ेलाफ़त की आड़ में आम मुसलमानों को अपनी ओर खींच लिया जाए और फिर जिस तरह चाहें और जो चाहें अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ उनको रखा जाए, नतीजे में जवानों के अक़ीदों को कमज़ोर किया जाता था और उनको ऐसे बातिल अक़ीदों और नीच सोंच में उलझा देते थे ताकि आम मुसलमानों को गुमराह करने का प्लान कामयाब हो सकें।
इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर एक कठिन दौर था जिसमें अनेक तरह की फ़िक्रें और विचारधाराएं इस्लामी समाज के लिए ख़तरा बन चुकी थीं, लेकिन आपने अपने वालिद और दादा की तरह एक पल के लिए भी इस साज़िश से ध्यान नहीं हटाया बल्कि पूरी सावधानी और गंभीरता के साथ इस्लाम की ग़लत तस्वीर बताने वालों, सूफ़ियत, ग़ुलू करने वालों, शिर्क और भी इसके अलावा बहुत सारी ख़ुराफ़ात और वाहियात जो मज़हब के नाम पर दीन का हिस्सा बताई जा रही थीं उन सबका मुक़ाबला किया और इनमें से किसी को भी अपने दौर में पनपने नहीं दिया।
इमाम हसन असकरी अ.स. और इस्लाम का ज़िंदा बाक़ी रखना
अब्बासी हुकूमत दौर और ख़ास कर इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर उन सबसे बुरे दौर में से एक था जिसमें हाकिमों की अय्याशी, उनके ज़ुल्म और अत्याचार, दीनी मामलात से बे रुख़ी, और दूसरी ओर मुसलमानों के इलाक़ों में ग़रीबी के फैलने की वजह से दीनी वैल्यूज़ ख़त्म हो चुकी थीं, इसलिए अगर इमाम हसन असकरी अ.स. द्वारा दिन रात की जाने वाली मेहनतें और कोशिशें न होतीं तो अब्बासियों की सियासत की वजह से इस्लाम का नाम भी लोगों के दिमाग़ से मिट जाता, हालांकि इमाम अ.स. ख़ुद अब्बासी हाकिमों की कड़ी निगरानी में थे लेकिन आपने हर इस्लामी शहर में अपने वकीलों को तैनात कर रखा था जिनके द्वारा मुसलमानों के हालात मालूम करते रहते थे, कुछ शहरों की मस्जिदें और इमारतें भी इमाम अ.स. के हुक्म से बनाई गईं, जिसमें ईरान के क़ुम शहर में मौजूद इमाम हसन असकरी (अ.स.) मस्जिद शामिल है, इससे पता चलता है कि आप अपने वकीलों और इल्मे इमामत से मुसलमानों की हर तरह की मुश्किल और उनकी पिछड़ेपन को जानते और उसे दूर करते थे।

आतंगवादी दाइश का सरगना अबु बकर बगदादी को अमेरिका ने ही बनाया था. रूस

आतंगवादी दाइश का सरगना अबु बकर बगदादी को अमेरिका ने ही बनाया था. रूस.









मास्को रूसी वज़ीरे ख़ारजा सर्गेई लावरोफ़ ने कहा की आतंगवादी दाइश का सरगना अबु बकर बगदादी को अमेरिका ने ही बनाया था.
इसे अमेरिका ने ही तयार किया और टुसु पेपर की तरह इस्तेमाल किया..
2003 मे अमेरिका अमन के बहाने इराक मे दाखिल हुआ और और ज़वाल पज़ीर मुल्क़ की जेलों मे खतरनाक लड़ाकों को रिहा किया जिस के बाद दाइश ने अपनी जड़े मज़बूत कर ली.. 

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