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ईरान की नई सबमरीन मिसाइल ने दुश्मनों के होश उड़ाए : रशिया टुडे


ईरान की नई सबमरीन मिसाइल ने दुश्मनों के होश उड़ाए : रशिया टुडे

ईरान ने हाल ही में जासिक 2 नाम की नई क्रूज़ मिसाइल का अनावरण किया है ईरान की जलसेना के प्रमुख एडमिरल ख़ानज़ादी ने कहा कि ईरान की यह नई मिसाइल हर प्रकार की सबमरीन पर लगाई जा सकती है
विलायत पोर्टल : प्राप्त जानकारी के अनुसार रशिया टुडे ने ईरान के नई सैन्य उपलब्धि और सबमरीन क्रूज़ मिसाइल के अनावरण को ईरान दुश्मनों के लिए गहरा सदमा और झटका बताते हुए कहा कि ईरान की इस नई मिसाइल ने दुश्मनों को हैरत में डाल दिया है ।
ईरान ने हाल ही में जासिक 2 नाम की नई क्रूज़ मिसाइल का अनावरण किया है ईरान की जलसेना के प्रमुख एडमिरल ख़ानज़ादी ने कहा कि ईरान की यह नई मिसाइल हर प्रकार की सबमरीन पर लगाई जा सकती है, ईरानी सेना के अनुसार जल से हवा में मार करने वाली इस मिसाइल की मारक क्षमता को समय के साथ और अधिक  बढ़ाया जा सकता है ।

इराक की युद्ध की आग भड़की तो सबसे पहले अमेरिका जलेगा : हिज़्बुल्लाह

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इराक की युद्ध की आग भड़की तो सबसे पहले अमेरिका जलेगा : हिज़्बुल्लाह

हिज़्बुल्लाह ने कहा कि अगर ऐसी कोई स्थिति उत्पन्न होती है तो देश का कोई भाग सुरक्षित नहीं रहेगा और इस आग में सबसे पहले जिसे जलना है वह अमेरिकी और सद्दाम और बॉथ के वफादार तथा उपद्रवी और हिंसा फैला रहे उन्मादी लोग हैं ।
विलायत पोर्टल : प्राप्त जानकारी के अनुसार इराक में आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में प्रभावशाली भूमिका निभाने वाले सशस्त्र दल हिज़्बुल्लाह इराक ने देश में जारी  संकट में अमेरिका और उसके पिछलग्गू देशों की नकारात्मक भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा कि अगर देश इसी तरह अराजकता का शिकार रहा और गृहयुद्ध की ओर बढ़ता है तो फिर लॉजिक और तार्किक वार्ता तथा न्याय का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा और ना ही यह बातें प्रभावी हो पाएंगी ।
हिज़्बुल्लाह ने कहा कि अगर ऐसी कोई स्थिति उत्पन्न होती है तो देश का कोई भाग सुरक्षित नहीं रहेगा और इस आग में सबसे पहले जिसे जलना है वह अमेरिकी और सद्दाम और बॉथ के वफादार तथा उपद्रवी और हिंसा फैला रहे उन्मादी लोग हैं ।
याद रहे कि कल रात नजफ़ में स्थित ईरानी वाणिज्य दूतावास को नकाबपोश लोगों ने हमलों का निशाना बनाया था, जिसे इराक में प्रतिबंधित सऊदी अरब के अल अरेबिया चैनल ने लाइव प्रसारित किया था ।

ईरान में शोक की लहर, आयतुल्लाह मीर मोहम्मदी ने दुनिया को अलविदा कहा

ईरान में शोक की लहर, आयतुल्लाह मीर मोहम्मदी ने दुनिया को अलविदा कहा

आयतुल्लाह सय्यद अबुल फज़ल मीर मोहम्मदी क़ुर्आने मजीद की तफ़्सीर के अलावा और भी बहुत से किताबों के रचयिता थे उन्होंने हौज़े ए इल्मिया के अलावा देश की कई यूनिवर्सिटीज़ में भी सेवा की है । आप असेंबली ऑफ़ एक्सपर्ट्स के सबसे वृद्ध सदस्य थे ।
विलायत पोर्टल : प्राप्त जानकारी के अनुसार ईरान के वरिष्ठ धर्मगुरु तथा असेंबली ऑफ़ एक्सपर्ट्स में तेहरान के प्रतिनिधि आयतुल्लाह सय्यद अबुल फज़ल मीर मोहम्मदी का इंतेक़ाल हो गया है ।
आयतुल्लाह सय्यद अबुल फज़ल मीर मोहम्मदी  क़ुर्आने मजीद की तफ़्सीर के अलावा और भी बहुत से किताबों के रचयिता थे उन्होंने हौज़े ए इल्मिया के अलावा देश की कई यूनिवर्सिटीज़ में भी सेवा की है । आप असेंबली ऑफ़ एक्सपर्ट्स के सबसे वृद्ध सदस्य थे ।

Ittehaad me badi taqt hai is video ko zaroor daikhye

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https://youtu.be/Dpo02L-LYh8

आतंगवादी दाइश का सरगना अबु बकर बगदादी को अमेरिका ने ही बनाया था. रूस

आतंगवादी दाइश का सरगना अबु बकर बगदादी को अमेरिका ने ही बनाया था. रूस.









मास्को रूसी वज़ीरे ख़ारजा सर्गेई लावरोफ़ ने कहा की आतंगवादी दाइश का सरगना अबु बकर बगदादी को अमेरिका ने ही बनाया था.
इसे अमेरिका ने ही तयार किया और टुसु पेपर की तरह इस्तेमाल किया..
2003 मे अमेरिका अमन के बहाने इराक मे दाखिल हुआ और और ज़वाल पज़ीर मुल्क़ की जेलों मे खतरनाक लड़ाकों को रिहा किया जिस के बाद दाइश ने अपनी जड़े मज़बूत कर ली.. 

शहादते इमाम मोहम्मद बाक़ीर अ स

*इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स) का संक्षिप्त जीवन परिचय:*
                        इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के सुपुत्र  इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का नाम मोहम्मद था और उनकी उपाधि बाक़िरूल उलूम अर्थात ज्ञानों को चीरने वाला है। इस उपाधि का कारण यह है कि इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने विभिन्न ज्ञानों के रहस्यों को स्पष्ट किया और उन्हें एक दूसरे से अलग किया। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की दूसरी भी उपाधियां हैं जैसे शाकिर, साबिर और हादी आदि। इमाम की हर उपाधि उनकी विशेष विशेषता की ओर संकेत करती है।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की माता का नाम फातेमा था जो इमाम हसन अलैहिस्सलाम की बेटी थीं। पैग़म्बरे इस्लाम के एक वफादार व प्रतिष्ठित अनुयाई जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी थे। एक दिन वह इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से मुलाक़ात के लिए गये। वह खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। उनका शरीर कमज़ोर हो गया था और उन्हें आंखों से कम दिखाई देता था परंतु खुशी उनके चेहरे से झलक रही थी। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को देखते ही उन्होंने कहा काबे के ईश्वर की सौगन्ध यह पैग़म्बरे इस्लाम की विशेषताएं हैं जो आपके  अंदर देख रहा हूं ईश्वर का धन्यवाद कि उसने मुझे आपको देखने का सौभाग्य प्रदान किया और पैग़म्बरे इस्लाम का सलाम आपको पहुंचाऊं। एक दिन जब मैं पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में था तो उन्होंने मुझसे फरमाया था कि हे जाबिर तुम मेरे वंश में से एक ऐसे बेटे को देखने तक जीवित रहोगे जो हुसैन की संतान में से होगा। उसका नाम मोहम्मद होगा। वह धर्म के ज्ञान को अलग अलग करेगा उसके बाद उसे बाक़िर की उपाधि दी जायेगी। जब भी उसे देखना उसे मेरा सलाम कहना।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का काल ज्ञान के विस्तार का काल था और धर्मशास्त्र तथा हदीस अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम एवं उनके पवित्र परिजनों के कथनों के क्षेत्र में काम करने वाले महान विद्वान उस समय थे परंतु इन सबके मध्य इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का विशेष स्थान था।
चौथी हिजरी क़मरी के अंत और पांचवी हिजरी क़मरी के आरंभ के महान विद्वान शेख मुफीद लिखते हैं” पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाइयों, अनुयाइयों को देखने वालों और धर्म शास्त्रियों ने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से रवायत की है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम अतीत के पैग़म्बरों के बारे में बयान फरमाते थे और लोग उनसे पैग़म्बर इस्लाम के आचरण एवं परम्परा से अवगत होते थे। हज संस्कारों में लोग इमाम पर पूर्ण विश्वास करते थे और इमाम पवित्र कुरआन की जो व्याख्या करते थे लोग उसे लिखते थे। सुन्नी शीया उनकी बातों को लिखते और उनकी सुरक्षा करते थे और शीया सुन्नी सभी लिखने वाले इमाम को बाक़िर व बाक़िरूल उलूम की उपाधि से जानते थे। अलबत्ता जाबिर बिन अब्दुल्लाह ने रवायत की है कि पैग़म्बरे इस्लाम के एक कथन से यह उपाधि ली गयी है।
पांचवीं हिजरी शताब्दी के महान शीया विद्वान शेख तूसी इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के प्रखर व मेधावी शिष्यों की संख्या ४६६ बताते हैं। वह लिखते हैं कि हिजाज़ के शीया सुन्नी सभी लोग धार्मिक मामलों को इमाम से पूछते थे। बहुत से सुन्नी विद्वान इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के पास छात्रों की भांति ज्ञान अर्जित करते थे। हिजाज़ में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम इतना प्रसिद्ध थे कि लोग उन्हें सैय्यदुल फोक़हा अर्थात धर्मशास्त्रियों के सरदार के नाम से जानते थे।
विभिन्न विषयों के बारे में इमाम का विशेष स्थान इस प्रकार  था कि हमेशा इस्लामी क्षेत्रों के लोगों के पूछने वालों का तांता लगा रहता था और समस्त लोग उनसे ज्ञान अर्जित करते थे। बहुत से सुन्नी विद्वान इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को ज्ञान का अथाह सागर मानते हैं। सुन्नी मुसलमानों के महान विद्वान ज़हबी  लिखते हैं” समस्त सदगुण इमाम के अंदर जमा थे और वे उत्तराधिकारी के पात्र थे। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम पवित्र कुरआन के एक बेहतरीन व्याख्याकर्ता के रूप में प्रसिद्ध थे। इमाम अपनी बात को सिद्ध करने के लिए सदैव पवित्र कुरआन की आयतों का सहारा लेते और फरमाते थे कि जो कुछ मैं कह रहा हूं मुझसे पूछो कि क़ुरआन में कहा आया है ताकि मैं उससे संबंधित आयत की तिलावत तुम्हारे लिए करूं।“
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को पवित्र कुरआन की आयतों पर इस प्रकार दक्षता प्राप्त थी कि उनके काल के प्रसिद्ध शायर मालिक बिन आयोन ने इमाम के बारे में शेर कहा है” कि अगर लोग क़ुरआन का ज्ञान अर्जित करना चाहें तो उन्हें जान लेना चाहिये कि क़ुरैश के पास बेहतरीन जानने वाला मौजूद है और अगर इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम कुरआन के बारे में बात करेंगे तो उससे बहुत से दीप जल जायेंगे।“
समाज के निर्धन व वंचित लोगों की सहायता इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की पावन जीवन शैली का भाग था। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम लोगों की भौतिक एवं ग़ैर भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति को अपना दायित्व समझते थे। ग़रीब व निर्धन लोग इमाम के पास एकत्रित होते थे इमाम उनकी बातों को सुनते और उनकी समस्याओं का समाधान करते थे। उनके सुपुत्र इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम इस बारे में फरमाते हैं” एक दिन मैं अपने पिता के पास गया उस समय वह मदीना के ग़रीब व निर्धन लोगों के मध्य आठ हज़ार दीनार बांट रहे थे और उसी समय उन्होंने ११ दासों को स्वतंत्र किया था”
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम छुट्टी के दिनों विशेषकर शुक्रवार को ग़रीबों व दरिद्रों की सहायता के लिए विशेष करते थे। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के हवाले से एक अन्य रवायत में आया है कि आर्थिक दृष्टि से हमारे पिता की स्थिति हमारे कुल के दूसरे लोगों से अच्छी नहीं थी और उनका खर्च भी दूसरों से अधिक था इसके बावजूद वह हर शुक्रवार को निर्धनों व वंचितों की सहायता करते थे चाहे उनकी सहायता एक दीनार ही क्यों न हो और इमाम फरमाते थे कि शुक्रवार को दान देने और निर्धनों की सहायता करने का पुण्य अधिक है जिस प्रकार शुक्रवार सप्ताह के दूसरे दिनों पर श्रेष्ठता रखता है।“
ईश्वरीय धर्म इस्लाम में लोगों के साथ अच्छे व्यवहार से पेश आने को बहुत महत्व दिया गया है और उसे एक मूल्यवान नैतिक विशेषता समझा जाता है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” मोमिन का अपने मोमिन भाई के लिए मुस्कराने का बहुत महत्व है और उसकी समस्याओं व दुःखों को दूर करना नेकी है और मोमिन के दिल को प्रसन्न करने से अधिक किसी दूसरी चीज़ पर ईश्वर की उपासना नहीं की गयी है।” इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम दूसरों को प्रसन्न करने से प्रसन्न होते थे और पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से लोगों से फरमाते थे कि जिसने मोमिन को प्रसन्न किया उसने मुझे प्रसन्न किया यानी पैग़म्बरे इस्लाम को प्रसन्न किया और जिसने मुझे प्रसन्न किया उसने ईश्वर को प्रसन्न किया और कभी पैग़म्बरे इस्लाम अपने आस पास के लोगों को ऐसे ,,,मज़ाक के लिए प्रोत्साहित करते थे जो मोमिन की प्रसन्नता का कारण बने और लोगों से फरमाते थे निःसंदेह ईश्वर उस व्यक्ति को पसंद करता है जो लोगों के मध्य मज़ाक करता है बशर्ते कि उसके मज़ाक में अशोभनीय बातें न हों”
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं।“ हमारे पिता यानी इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम सदैव ईश्वर का गुणगान करते थे, खाना खाने के समय ईश्वर का गुणगान करते थे और जब लोगों से बात करते थे तब भी ईश्वर की याद से निश्चेत नहीं रहते थे और ला इलाहा इल्लल्लाह का वाक्य सदैव उनकी ज़बान पर होता था। सुबह वे सूरज निकलने तक हम सब को ईश्वर की उपासना के लिए कहते थे। परिवार के जो सदस्य कुरआन की तिलावत कर सकते थे उनसे कुरआन की तिलावत करने के लिए कहते थे और शेष लोगों से ईश्वर का गुणगान करने के लिए कहते थे। एक सुन्नी विद्वान मोहम्मद बिन मुन्कदिर इमाम सादिक़ के हवाले से कहते हैं” मुझे विश्वास नहीं था कि अली बिन हुसैन ऐसे एसे,,, बेटे को छोड़कर जायेंगे जो नैतिक विशेषताओं व सदगुणों में उनके जैसा होगा यहां तक कि मैंने उनके बेटे मोहम्मद बिन अली को देखा। जब हवा बहुत गर्म थी तो मैं मदीने की ओर गया। रास्ते में मुझे मोहम्मद बिन अली मिल गये। वह बहुत शक्तिशाली व्यक्ति थे। मैंने देखा कि वह खेत में काम कर रहे हैं। मैंने सोचा कि क़ुरैश के प्रतिष्ठित लोगों में एक व्यक्ति दुनिया के माल के लिए इस प्रकार का कार्य कर रहा है और मैं अभी उसे नसीहत करता हूं। इसी विचार के साथ मैं उनके पास गया और कहा ईश्वर आपकी समस्या दूर करे। क़ुरैश का प्रतिष्ठित व्यक्ति दुनिया का माल संचित करने के लिए घर से बाहर आकर इस प्रकार की धूप में काम कर रहा है! अगर इस हालत में आपको मौत आ जाये तो क्या होगा? उस समय इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फरमाया ईश्वर की सौगन्ध! अगर इस हालत में मुझे मौत आ जाये तो मैं ईश्वर की उपासना की हालत में मरूंगा। क्योंकि मैं इस गर्मी में कार्य कर रहा हूं ताकि मैं लोगों और तुझ जैसे के सामने हाथ न फैलाऊं। हां मैं एक हालत से डरता हूं और वह यह है कि ईश्वर की अवज्ञा व पाप करते समय मुझे मौत न आ जाये। उस समय मैंने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से कहा ईश्वर आप पर दया करे मैं आपको नसीहत करना चाहता था परंतु आप ने तुझ ही नसीहत कर दी।

क़ातिलाने इमाम हुसैन आ स का मज़हब मौलाना अली नक़ी नक़्क़न साहब

Masayb 19 ramzanul

 Masayb 19 ramzanul

حضرت علیؑ کی وصیت

  ۔  ۔ ۔  ۔ ۔ حضرت علیؑؑؑ کی وصیت 
 




ضربت کے بعد حسنینؑ شریفین اور ان کے چاہنےوالوں کے نام حضرت علی علیہ السلامؑ کی وصیت:

اُوْصِیْکُمَا بِتَقْوَی اللّٰہِ۔

میں تم دونوں کو خدا سے ڈرتے رہنے کی وصیت کرتا ہوں۔

وَاِنْ لَا تَبْغِیَاالدُّنْیَا وَاِنْ بَغَتْکُمَا۔

اور دنیا کی طرف مائل نہ ہونا خواہ وہ تمہاری طرف مائل ہو۔

وَلَا تَأَسَفًا عَلیٰ شَیْ ءٍ مِنْھَا زُوِیَ عَنْکُمَا۔

اور دنیا کی جو چیز تم سے روک لی جائے اس پر افسوس نہ کرنا۔

وَقُوْلَا بِالْحَقِّ۔

اور جو بھی کہنا حق کے لئے کہنا۔

وَاعْمَلَا لِلْاَجْرِ۔

اور جو کچھ کرنا ثواب کے لئے کرنا۔

وَکُوْنَا لِلظَالِمِ خَصْمًا وَلِلمَظْلُوْمِ عَوْنًا۔

اور ظالم کے دشمن اور مظلوم کے مددگار رہنا۔

اُوْصِیْکُمَا وَجَمِیْعَ وَلَدِیْ وَاَھْلِیْ وَمَنْ بَلَغَہُ کِتَابِیْ بِتَقْوَی اللّٰہِ وَنَظْمِ اَمْرِکُمْ۔

میں تم دونوں کو، اپنی دوسری اولادوں کو، اپنے کنبے کے افرادکواور جن لوگوں تک میرایہ نوشتہ پہنچے، اُن سب کو وصیت کرتا ہوں کہ اللہ سے ڈرتے رہنا اور اپنے امور کو منظم رکھنا۔

وَصَلَاحِ ذَاتِ بَیْنِکُمْ۔ فَاِنِّیْ سَمِعْتُ جَدَّکُمَاصَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ یَقُوْلُ:صَلَاحُ ذَاتِ الْبَیْنِ اَفْضَلُ مِنْ عَامَۃِ الصَّلٰوۃِ وَالصِّیَامِ۔

اورباہمی تعلقات کو سلجھائے رکھنا، کیونکہ میں نے تمہارے نانا رسول اللہ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کو فرماتے سنا ہے کہ:آپس کی کشیدگیوں کومٹانا عام نماز روزے سے افضل ہے۔

وَاللّٰہَ اللّٰہَ فِیْ الْاَیْتَامِ، فَلاَ تُغِبُّوْاأَفْوَاہَہُمْ وَلَا یَضِیْعُوْا بِحَضْرَتِکُمْ۔

دیکھو! یتیموں کے بارے میں اللہ سے ڈرتے رہناان پر فاقے کی نوبت نہ آئے اور تمہارے ہوتے ہوئے وہ برباد نہ ہوں۔

وَاللّٰہَ اللّٰہَ فِیْ جِیْرَانِکُمْ، فَاِنَّھُمْ وَصِیَّۃُ نَبِیِّکُمْ، مَازَالَ یُوْصِیْ بِھِمْ، حَتَّی ظََنَنَّا أَنَّہُ سَیُوَرِّثُھُمْ۔

دیکھو! اپنے ہمسایوں کے بارے میں خدا سے ڈرتے رہنا، کیونکہ ان کے بارے میں تمہارے نبیؐ نے برابر ہدایت کی ہےآپ ؐان کے بارے میں اس قدر تاکید فرماتے تھے کہ ہمیں یہ گمان ہونے لگا تھا کہ آپ ؐاُنھیں بھی ورثہ دلائیں گے۔

وَاللّٰہَ اللّٰہَ فِیْ الْقُرْاٰنِ، لَا یَسْبِقُکُمْ بِالْعَمَلِ بِہٖ غَیْرُکُمْ۔

اور قرآن کے بارے میں اللہ سے ڈرتے رہنا، کہیں ایسا نہ ہو کہ دوسرے اس پر عمل کرنے میں تم پر سبقت لے جائیں۔

وَاللّٰہَ اللّٰہَ فِیْ الصَّلوٰۃِ، فَاِنَّھَاعَمُودُ دِیْنِکُمْ۔

نماز کے بارے میں اللہ سے ڈرنا کیونکہ وہ تمہارے دین کا ستون ہے۔

وَاللّٰہَ اللّٰہَ فِیْ بیْتِ رَبِّکُمْ، لَا تُخْلُوْہُ مَابَقِیْتُمْ۔

اور اپنے رب کے گھر کے بارے میں خدا سے ڈرتے رہنا، جیتے جی اسے خالی نہ چھوڑنا۔

فَاِنَّہُ اِنْ تُرِکَ لَمْ تُناظَرُوْا۔

کیونکہ اگریہ خالی چھوڑ دیا گیا توپھر (عذاب سے) مہلت نہ پاؤ گے۔

وَاللّٰہَ اللّٰہَ فِی الْجِہَادِ بِاَمْوَالِکُمْ وَاَنْفُسِکُمْ وَاَلْسِنَتِکُمْ فِیْ سَبِیْلِ اللّہِ۔

اپنے اموال، جان اور زبان سے راہِ خدا میں جہاد کے سلسلے میں خدا سے ڈرتے رہنا۔

وَعَلَیْکُمْ بِالتَّوَاصُلِ وَالتَّبَاذُلِ، وَاِیَّاکُمْ وَالتَّدَابُرَوَالتَّقَاطُعَ۔

تم پر لازم ہے کہ ایک دوسرے سے میل ملاپ رکھناا ور ایک دوسرے کی اعانت کرناخبردار ایک دوسرے سے قطع تعلق سے پرہیز کرنا۔

لَا تَتْْرُکُواالْاَمْرَ بِالْمَعْرُوْفِ وَالنَّہْیَ عَنِ الْمُنْکَرِ، فَیُوَلَّیٰ عَلَیْکُمْ شِرَارُکُمْ، ثُمَّ تَدْعُوْنَ فَلَا یُسْتَجَابُ لَکُمْ۔

دیکھو!امربالمعروف اور نہی عن المنکرکو ترک نہ کرنا، ورنہ بد کردار تم پر مسلّط ہوجائیں گے اور پھر اگر تم دعا مانگوگے تو وہ قبول نہ ہوگی۔

یَا بَنِیْ عَبْدِالْمُطَّلِبِ! لَا اُلْفِیَنَّکُمْ تَخُوْضُوْنَ دِمَآءَ الْمُسْلِمِیْنَ، خَوْضًا تَقُوْلُوْنَ: قُتِلَ اَمِیْرُالْمُؤْمِنِیْنَ۔

اے عبدالمطلب کے بیٹو! ایسا نہ ہو کہ تم، امیرالمو منین قتل ہوگئے، امیر المومنین قتل ہوگئے کے نعرے لگاتے ہوئے مسلمانوں کے خون سے ہولی کھیلنے لگو۔

أَلاَ لاَ تَقْتُلُنَّ بِیْ اِلَّا قَاتِلِیْ۔

دیکھو! میرے بدلے میں صرف میرا قاتل ہی قتل کیاجائے۔

اُنْظُرُوْااِذَاأَ نَامُتُّ مِنْ ضَرْبَتِہِ ہٰذِہٖ، فَاضْرِبُوْہُ ضَرْبَۃً بِضَرْبَۃٍ، وَلَا تُمَثِّلُ بِالرَّجُلِ، فَاِنِّیْ سَمِعْتُ رَسُوْلَ اللّٰہُ (صَلّی اللّٰہ عَلیْہِ وَآلِہِ وَسَلَّمَ) یَقُوْلُ: ”
اِیَّاکُمْ وَالْمُثْلَۃَ وَلَوْبِالْکَلْبِ الْعَقُوْرِ۔

دیکھو! اگر میں اس ضرب سے مر جاؤں، تو تم اس ایک ضرب کے بدلے میں اسے ایک ہی ضرب لگانا، اور اس شخص کے ہاتھ پیرنہ کاٹنا، کیونکہ میں نے رسول اللہ(صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) کو فرماتے سنا ہے کہ: خبردار کسی کے ہاتھ پیر نہ کاٹنا، خواہ وہ کاٹنے والا کتّا ہی کیوں نہ ہو۔

ابن ملجم کون تھا ؟

  .  .  . .  . . .  . ابن ملجم کون تھا ؟







ابن ملجم کی حکایت باعث عبرت ہے حضرت علی ع کی ظاہری خلافت کا زمانہ آیا تو حضرت علی ع نے یمن میں اپنے عامل نمائندے کو خط لکھا اور اس سے درخواست کی لوگوں کے ساتھ عدل و انصاف سے پیش آئے اور آخر میں اس سے چاہا کہ دس لائق ترین اور اپنے معتمد افراد کو ایک خاص کام کے لیے حضرت ع کے پاس بھیجے اس نے سو لوگوں کو منتخب کیا اور پھر ان میں دس لوگوں کو جو سبھی سے اچھے اور افضل تھے انتخاب کیا ان دس لوگوں میں سے ابن ملجم مرادی بھی شامل تھا ہے جب یہ لوگ حضرت علی ع کے پاس پہنچے ابن ملجم جو کہ شجاع فصیح و بلیغ تھا اسکو ان لوگوں نے اپنا سخن گو بنایا تاکہ حضرت ع سے گفتگو کرے اور مدح میں اس نے جو خود شعر کہے تھے وہ پڑھے اسکی تمام باتوں میں ایک بات یہ تھی کہ ہم فخر کرتے ہیں آپ فرمان دیں ہم سب غلامی کریں اور ہماری تلواریں آپ ع کے دشمنوں کے لیے آمادہ ہیں حضرت ع نے بعد میں اسکو اپنے پاس بلایا اور فرمایا تمہارا نام کیا ہے اس نے کہا عبدالرحمن حضرت ع نے کہا تمہارے باپ کا کیا نام ہے
کہا کہ ملجم حضرت ع نے کہا کس قبیلے سے ہو کہا مراد سے پھر حضرت ع نے اس سے تین مرتبہ کہا کیا تم مرادی ہو ؟ کیا تم مرادی ہو ؟ کیا تم مرادی ہو ؟ ابن ملجم نے کہا جی ہاں امیرالمومنین ع
اس وقت حضرت ع نے زبان پر کلمہ ترجعیع جاری کیا "اناللہ وانا الیہ راجعون" ہم خدا ہی کے ہیں اور اسکی طرف لوٹ کر جانے والے ہیں
پھر حضرت ع نے اس سے پوچھا کیا تمہاری دایہ یہودی عورت تھی کہا کہ ہاں جو عورت مجھے دودھ پلاتی تھی ایک یہودی عورت تھی حضرت ع نے فرمایا کہ جب تم روتے تھے تو تمہاری دایہ کہتی تھی اے قاتل شتر صالح سے بد تر ابن ملجم نے کہا جی ہاں ایسا ہی تھا حضرت ع خاموش ہو گئے اور حکم دیا کہ اسکی مہمان نوازی کریں کچھ دنوں بعد ابن ملجم بیمار ہوا چونکہ میں اسکا کوئی متعلق کوئی نہ تھا نو حضرت خود اسکی عیادت اور خدمت کرتے تھے یہاں تک کہ وہ صیح ہو گیا ابن ملجم اس قدر حضرت ع کی محبت کا شیفتہ ہو گیا عرض کیا کہ میں آپ کے پاس سے  نہیں جاؤں گا اور اب یہیں رہوں گا حضرت ع نے فرمایا"اناللہ واناالیہ راجعون" ابن ملجم نے کہا اس آیت پڑھنے سے آپکی مراد کیا ہے؟ حضرت ع نے فرمایا تم میرے قاتل ہو ابن ملجم کو اس بات سے تعجب ہوا اور سوچ رہا تھا کہ حضرت ع کا دوست و محب ہوں لیکن یہ نہیں جانتا تھا کہ خداوند عالم سبھی انسانوں کا امتحان لیتا ہے جو شخص محبت کا دعوای کرتا ہے اسکے اوپر ہزاروں امتحان ہوتے ہیں
ابن ملجم نے اپنا سر پیٹ لیا اور کہا امیرالمومنین ع ابھی اسی وقت مجھے قتل کر دیں تاکہ ایسا حادثہ پیش نہ آئے حضرت ع نے فرمایا تم نے ابھی کوئی کام ایسا انجام نہیں دیا میں کیسے جرم سے پہلے قصاص لوں ابن ملجم صفین و نہروان کی جنگوں میں حضرت علی ع کے قافلے کے  ساتھ ساتھ تھا جب لشکر اسلام نے خوارج پر غلبہ حاصل کیا تو ابن ملجم نے کہا مولا ع اجازت دیں میں آپ سے پہلے کوفہ جاکر آپکی فتخ و کامیابی و خوشخبری کوفہ والوں کو دوں حضرت ع نے کہا تمہارا مقصد اس کام سے کیا ہے ؟ اس نے کہا میں چاہتا ہوں خدا مجھ سے راضی ہو جائے کہ حضرت علی ع کی کامیابی سے لوگوں کو خوشحال کروں حضرت علی ع نے اجازت دی اس نے ایک جھنڈا ہاتھ میں لیا کوفہ کی طرف گیا شہر میں داخل ہوا اور بشارت بشارت کی فریاد شہر میں گونجی اسطرح وہ گلیوں ے گزر رہا تھا کہ قطامہ کے کے گھر کے پاس پہنچا یہ بہت زیادہ خوبصورت حسین جمیل اور دولت مند عورت تھی لیکن بدکار و فحاشہ  عورت تھی جب اس نے فتح کی خبر سنی ابن ملجم کو پکارا تاکہ وہ اپنے باپ اور بھائی کے بارے میں پوچھے قطامہ اسے اپنے گھر لے گئ عزت و احترام کیا مہمان نوازی کی ابن ملجم پہلی ہی نگاہ میں اسکا عاشق ہو گیا اور اپنے دین و ایمان کو اسکے ہاتھوں میں بیچ دیا قطامہ نے اپنے باپ اور بھائی جو سپاہ خوارج میں سے تھے پوچھا ابن ملجم نے کہا وہ سب جنگ میں ہلاک ہو گئے یہ خبر سنتے ہی وہ رونے لگی ابن ملجم اس خبر کو دینے پر  پیشمان ہوا تھا قطامہ تھوڑی دیر بعد اٹھی اور دوسرے کمرے میں گئ اپنے آپ کو آرائش و زینت سے سنوارا اور واپس آئی اسکو دیکھتے ہی ابن ملجم کا دل لرز گیا
ابن ملجم جو شہوت نفسانی میں اسیر اور اپنے اختیار کو ہاتھ سے دے بیٹھا تھا قطامہ سے خواستگاری کی قطامہ نے کہا اگر مجھے چاہتے ہو تو میرا مہر بہت زیادہ ہے ابن ملجم نے کہا جتنا بھی ہو گا قبول کروں گا قطامہ نے کہا زبادہ ہے کچھ پیسے جوہرات اور مشک عنبر و عطر وغیرہ ابن ملجم نے کہا اسکے علاوہ اور کچھ قطامہ نے کہا بہت سخت پھر وہ  اٹھی اور کمرے سے گئ اور اپنے آپ کو دوسری شکل میں آرائش کی اور واپس آئی ابن ملجم جو جنون کی حد تک پہنچ گیا تھا کہا کہ اور کیا چاہتی ہو ؟
قطامہ نے کہا حضرت علی ع کا قتل ابن ملجم اک دم لرزہ اور پریشان ہوا تھوڑی دیر بعد کہا مشکل ہے ابھی چھوڑو چند دن بعد اس بارے میں فکر کروں گا دوسرے دن ایک قاصد یمن سے ابن ملجم کے  پاس آیا اور کہا تمہارا باپ اور چچا مر گئے ہیں اور تم ان سب کے وارث ہو جاؤ اور اپنے اموال کو جمع کرو ابن ملجم بہت خوش ہوا دل میں سوچ رہا تھا کہ پیسے لے کر قطامہ پر نثار کر دوں گا اس وجہ سے حضرت علی ع کے پاس گیا اور کہا میرے باپ اور چچا کا یمن میں انتقال ہو گیا ہے چاہتا ہوں کہ اپنے قبیلے کی طرف چلا جاؤں آپ اپنے عامل کے پاس یمن میں خط لکھ دیں اور سفارش کریں کہ میراث کے اموال میں جمع آوری میں مدد کرے ابن ملجم یمن کی طرف چلا راستے میں رات ہو گی دور سے آگ کا شعلہ دیکھا اپنے دل میں سوچا کہ نزدیک جائے اور رات کو آگ کے پاس جا کر رہے جب آگ سے نزدیک ہوا اچانک جناتوں نے فریاد کی کہ اسداللہ ع کا قاتل آگیا ابن ملجم ڈرا اور کاپنے لگا جناتوں نے اس پر سنگ باری شروع کر دی وہ وہاں نہ رہ سکا کہ آرام کرے تھکا ماندہ وہاں سے بھاگا اور زحمت سہتا ہوا یمن پہنچا اور خط یمن کے حاکم کو دیا حاکم نے دستخط حضرت علی ع کو بوسہ دیا اور آنکھوں سے لگایا اور جلد از جلد اسکے کام کو پورا کیا ابن ملجم نے اپنے تمام اموال لیے اور خوشی خوشی کوفہ کی طرف چلا لیکن راستے میں ڈاکوؤں نے اسکو روکا اور اسکے لباس اور سواری کے علاوہ تمام اموال لوٹ لیا ابن ملجم جنگل میں سرگرداں تھا لیکن تھوڑی دیر بعد ایک قافلے سے جا ملا اور انکے ساتھ ہمسفر ہو گیا قافلہ میں وہ دو شخص کا دوست ہو گیا ان دونوں کا تعلق خوارج سے تھا ان لوگوں نے کہا ہم نے عہد کیا ہے کہ حضرت علی ع معاویہ و عمروعاص کو قتل کریں گے اس گروہ کا نظریہ تھا کہ یہ تینوں لوگ مسلمانوں کے درمیان اختلاف کا سبب ہیں وہ دونوں خوارج مامور ہوئے کہ معاویہ و عمرو عاص کو قتل کریں چنانچہ عبدالرخمن نے قبول کیا کہ وہ حضرت علی ع کو شہید کرے وہ کوفہ پہنچااور سیدھا قطامہ کے گھر گیا یہ فحاشہ اور خود فروش عورت اس کے لیے شراب لائی اور ابن ملجم مست ہوا اور پھر قطامہ کے پاؤں پر گرا اور اسکے وصال کی خواہش کی لیکن قطامہ نے کہا جب تک حضرت علی ع کو شہید نہیں کرو گے تب تک ایسا نہیں ہو سکتا ابن ملجم جو مجنون و پاگل ہو گیا اس نے کہا ابھی جاتا ہوں اور حضرت علی ع کو شہید کرتا ہوں قطامہ نے کہا کہ اس طرح نہیں بلکہ قتل کے لیے مقدمات ضروری ہیں اس نے ابن ملجم کی تلوار لی اور ہزار درہم اسے تیز کرنے کے لیے دیا اور ہزار درہم اسکو تلوار زہر آلود کرنے کے لیے دیا اس رات بدنصیب و بے حیا نے محراب مسجد کوفہ میں مولا علی ع پر وار کیا اور تلوار سے ایسا زخم لگایا اسکے اثر سے دو روز بعد جانشین رسول خدا وصی مصطفی ع شہید ہو گئے

کتاب.مولائی داستانیں
صفحہ.٧٤
مصنف.شہید محراب آیت اللہ دستغیب شیرازی

इमाम अली आ स

           









 अली इब्ने अबी तालिब (अरबी : علی ابن ابی طالب) का जन्‍म 17 मार्च 600 (13 रजब 24 हिजरी पूर्व) मुसलमानों के तीर्थ स्थल काबा के अन्दर हुआ था। वे पैगम्बर मुहम्मद (स.) के चचाजाद भाई और दामाद थे और उनका चर्चित नाम हज़रत अली है। वे मुसलमानों के खलीफा के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने 656 से 661 तक राशिदून ख़िलाफ़त के चौथे ख़लीफ़ा के रूप में शासन किया, और शिया इस्लाम के अनुसार वे632 to 661 तक पहले इमाम थे। इसके अतिरिक्‍त उन्‍हें पहला मुस्लिम वैज्ञानिक भी माना जाता है। उन्‍होंने वैज्ञानिक जानकारियों को बहुत ही रोचक ढंग से आम आदमी तक पहुँचाया था।
Salam Ya  Hussain  A S: अबू तालिब [7] और फातिमा बिन असद के लिए पैदा हुए, [1] कई शास्त्रीय इस्लामी के अनुसार, इस्लाम में सबसे पवित्र स्थान मक्का में काबा ( अरबी : كعبة ) के पवित्र अभयारण्य में पैदा होने वाला अली अकेला व्यक्ति है। स्रोत, विशेष रूप से शिया वाले। [1][8][9] अली पहला पुरुष था जिसने इस्लाम को स्वीकार किया, [10][11] और कुछ लेखकों के मुताबिक पहला मुस्लिम था। [12] अली ने मुहम्मद को शुरुआती उम्र से संरक्षित किया [13] और नवजात मुस्लिम समुदाय द्वारा लड़ी लगभग सभी लड़ाई में हिस्सा लिया। मदीना में जाने के बाद, उसने मुहम्मद की बेटी फातिमा से विवाह किया। [1] खलीफ उथमान इब्न अफ़ान की हत्या के बाद, 656 में मुहम्मद के साथी (सहबा) ने उन्हें खलीफा नियुक्त किया था। [14][15] अली के शासनकाल में नागरिक युद्ध हुए और 661 में, दो दिनों बाद शहीद होने के कारण कुफा के महान मस्जिद में प्रार्थना करते हुए खारीजाइट ने उन पर हमला किया और हत्या कर दी । [16][17][18]

राजनीतिक और आध्यात्मिक रूप से शिया और सुन्नी दोनों के लिए अली महत्वपूर्ण है। [19] अली के बारे में कई जीवनी स्रोत अक्सर सांप्रदायिक रेखाओं के अनुसार पक्षपातपूर्ण होते हैं, लेकिन वे इस बात से सहमत हैं कि वह एक पवित्र मुस्लिम था, जो इस्लाम के कारण और कुरान और सुन्नत के अनुसार एक शासक था। [2] जबकि सुनीस अली को रशीदुन (दाएं निर्देशित) खलीफ के चौथे और फाइनल पर विचार करते हैं, शिया मुसलमानों ने अली को गदिर खुम में घटनाओं की व्याख्या के कारण मुहम्मद के बाद पहली इमाम के रूप में माना। शिया मुस्लिम भी मानते हैं कि अली और अन्य शिया इमाम (जिनमें से सभी मुहम्मद के बेय (अरबी : بيت , घरेलू) के सदस्य हैं) मुहम्मद के लिए सही उत्तराधिकारी हैं । यह असहमति थी कि उमाह ( अरबी : أمة , मुस्लिम समुदाय) को शिया और सुन्नी शाखाओं में विभाजित किया गया था।
 Salam Ya  Hussain  A S: प्रारंभिक वर्ष
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अली के पिता, अबू तालिब, शक्तिशाली कुरैशी जनजाति की एक महत्वपूर्ण शाखा बनू हाशिम के काबा के संरक्षक थे और एक शेख ( अरबी : شيخ) थे। वह मुहम्मद का चाचा भी था, और अब्दुल मुतालिब (अबू तालिब के पिता और मुहम्मद के दादा) के बाद मुहम्मद उठाया था। [22][23] अली की मां फातिमा बिन असद भी बानू हाशिम से संबंधित थीं, जिससे अली इबैहिम (अरबी : إسماعيل , इश्माएल) इब्रैहिम के पुत्र (अरबी : إبراهيم, अब्राहम) के वंशज थे। [24] कई स्रोत, खासकर शिई, यह प्रमाणित करते हैं कि अली मक्का शहर में काबा के अंदर पैदा हुआ था, [1][25] जहां वह तीन दिनों तक अपनी मां के साथ रहा। [1][9] काबा का दौरा करते हुए उनकी मां ने अपने श्रम दर्द की शुरुआत महसूस की और जहां उनके बेटे का जन्म हुआ, वहां प्रवेश किया। कुछ शिया स्रोतों में अली की मां के प्रवेश के चमत्कारी विवरण काबा में हैं। काबा में अली का जन्म शिया के बीच अपने "उच्च आध्यात्मिक स्टेशन" को साबित करने वाला एक अनूठा कार्यक्रम माना जाता है, जबकि विभिन्न सुन्नी विद्वानों में यह एक महान माना जाता है, यदि अद्वितीय, भेद नहीं है। [26]

एक परंपरा के अनुसार, मुहम्मद पहला व्यक्ति था जिसे अली ने देखा था क्योंकि उसने अपने हाथों में नवजात शिशु को लिया था। मुहम्मद ने उन्हें अली नाम दिया, जिसका अर्थ है "महान"। अली के माता-पिता के साथ मुहम्मद का घनिष्ठ संबंध था। जब मुहम्मद अनाथ हो गए और बाद में अपने दादा अब्दुल मुतालिब को खो दिया, अली के पिता ने उन्हें अपने घर ले लिया। [1] मुहम्मद ने खादीया बिंट खुवेलीद से शादी के बाद अली का जन्म दो या तीन साल बाद हुआ था। [27] जब अली पांच वर्ष का था, तो मुहम्मद ने उसे उठाए जाने के लिए अली को अपने घर ले लिया। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि ऐसा इसलिए था क्योंकि उस समय मक्का में एक अकाल था और अली के पिता का समर्थन करने के लिए एक बड़ा परिवार था; हालांकि, अन्य लोग बताते हैं कि अली को उनके पिता पर बोझ नहीं होता था, क्योंकि अली उस समय पांच वर्ष का था और अकाल के बावजूद, अली के पिता, जो वित्तीय रूप से अच्छी तरह से बंद थे, अजनबियों को भोजन देने के लिए जाने जाते थे अगर वे भूखे थे। [28] जबकि यह विवादित नहीं है कि मुहम्मद अली उठाए, यह किसी भी वित्तीय तनाव के कारण नहीं था कि अली के पिता जा रहे थे।

इस्लाम की स्वीकृति
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अली पांच साल की उम्र से मुहम्मद और मुहम्मद की पत्नी खदीजा के साथ रह रहे थे। जब अली नौ वर्ष का था, मुहम्मद ने खुद को इस्लाम के पैगंबर के रूप में घोषित किया, और अली इस्लाम को स्वीकार करने वाला पहला बच्चा बन गया। खादीजा के बाद इस्लाम को स्वीकार करने के बाद वह दूसरा व्यक्ति थे। इस्लाम और मुसलमानों के इतिहास के पुनर्गठन में सईद अली असगर रज्वी के अनुसार, "अली और कुरान 'मुहम्मद मुस्तफा और खदीजा-तुल-कुबरा के घर में 'जुड़वां'के रूप में बड़े हो गए।" [29]

अली की जिंदगी की दूसरी अवधि 610 में शुरू हुई जब उन्होंने 9 साल की उम्र में इस्लाम घोषित कर दिया और मुहम्मद के हिजरा के साथ 622 में मदीना के साथ समाप्त हो गया। [1] जब मुहम्मद ने बताया कि उन्हें एक दिव्य प्रकाशन प्राप्त हुआ है, तो अली नौ साल की उम्र में, उनका विश्वास किया और इस्लाम का दावा किया। [1][2][30][31][32] अली इस्लाम को गले लगाने वाले पहले पुरुष बने। [33][34][35][36] शिया सिद्धांत ने जोर देकर कहा कि अली के दिव्य मिशन को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने इस्लाम को किसी भी पूर्व इस्लामी मक्का पारंपरिक धर्म संस्कार में भाग लेने से पहले स्वीकार किया, जिसे मुस्लिमों द्वारा बहुवादी ( शर्करा देखें) के रूप में माना जाता है या मूर्तिपूजक इसलिए शिया अली के बारे में कहते हैं कि उनके चेहरे को सम्मानित किया जाता है, क्योंकि यह मूर्तियों के सामने प्रस्तुतियों से कभी नहीं निकलता था। [30] सुन्नी भी सम्मानित करम अल्लाह वजाहु का उपयोग करते हैं, जिसका अर्थ है "उसके चेहरे पर भगवान का अनुग्रह।" उनकी स्वीकृति को अक्सर रूपांतरण कहा जाता है क्योंकि वह कभी मक्का के लोगों की तरह मूर्ति पूजा करने वाला नहीं था। वह इब्राहीम के ढांचे में मूर्तियों को तोड़ने के लिए जाने जाते थे और लोगों से पूछा कि उन्होंने अपनी खुद की कुछ चीज़ों की पूजा क्यों की। [37] अली के दादा, बानी हाशिम कबीले के कुछ सदस्यों के साथ, इस्फ के आने से पहले हनीफ़, या एकेश्वरवादी विश्वास प्रणाली के अनुयायी थे।

धुल अशीरा का त्यौहार
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मुहम्मद ने उन्हें सार्वजनिक रूप से आमंत्रित करना शुरू करने से तीन साल पहले लोगों को इस्लाम में गुप्त रूप से आमंत्रित किया था। इस्लाम के चौथे वर्ष में, जब मुहम्मद को इस्लाम में आने के लिए अपने करीबी रिश्तेदारों को आमंत्रित करने का आदेश दिया गया था [38] उन्होंने एक समारोह में बनू हाशिम कबीले को इकट्ठा किया था। भोज में, वह उन्हें इस्लाम में आमंत्रित करने जा रहा था जब अबू लाहब ने उसे बाधित कर दिया, जिसके बाद हर कोई भोज छोड़ गया। पैगंबर ने अली को फिर से 40 लोगों को आमंत्रित करने का आदेश दिया। दूसरी बार, मुहम्मद ने इस्लाम की घोषणा की और उन्हें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। [39] उसने उनसे कहा,

मैं उनकी दया के लिए अल्लाह को धन्यवाद देता हूं। मैं अल्लाह की प्रशंसा करता हूं, और मैं उसका मार्गदर्शन चाहता हूं। मैं उस पर विश्वास करता हूं और मैंने उस पर अपना भरोसा रखा है। मैं गवाह हूं कि अल्लाह को छोड़कर कोई ईश्वर नहीं है; उसके पास कोई साझेदार नहीं है; और मैं उसका दूत हूं। अल्लाह ने मुझे आपको अपने धर्म में आमंत्रित करने का आदेश दिया है: और अपने निकटतम रिश्तेदारों को चेतावनी दीजिए। इसलिए, मैं आपको चेतावनी देता हूं, और आपको यह प्रमाणित करने के लिए बुलाता हूं कि अल्लाह के अलावा कोई ईश्वर नहीं है, और मैं उसका दूत हूं। हे अब्दुल मुतालिब के पुत्र, कोई भी जो तुम्हारे पास लाया गया है उससे बेहतर कुछ भी नहीं पहले। इसे स्वीकार करके, इस कल्याण को इस दुनिया में और इसके बाद में आश्वस्त किया जाएगा। इस महत्वपूर्ण कर्तव्य को पूरा करने में आप में से कौन मेरी सहायता करेगा? इस काम के बोझ को मेरे साथ कौन साझा करेगा? मेरी कॉल का जवाब कौन देगा? मेरा उपनिवेश, मेरा डिप्टी और मेरा वजीर कौन बन जाएगा? [40]}}

मुहम्मद के आह्वान का जवाब देने के लिए अली अकेला था। मुहम्मद ने उसे बैठने के लिए कहा, "रुको! शायद आपके से बड़ा कोई भी मेरी कॉल का जवाब दे सकता है।" मुहम्मद ने फिर दूसरी बार बनू हाशिम के सदस्यों से पूछा। एक बार फिर, अली जवाब देने वाला अकेला था, और फिर, मुहम्मद ने उसे इंतजार करने के लिए कहा। मुहम्मद ने फिर तीसरी बार बनू हाशिम के सदस्यों से पूछा। अली अभी भी एकमात्र स्वयंसेवक था। इस बार, मुहम्मद ने अली की पेशकश स्वीकार कर ली थी। मुहम्मद ने "अली [करीब] खींचा, उसे अपने दिल पर दबा दिया, और सभा से कहा: 'यह मेरा वजीर, मेरा उत्तराधिकारी और मेरा अनुयायी है। उसे सुनो और उसके आदेशों का पालन करें।'" [41] एक और वर्णन में, जब मुहम्मद ने अली के उत्सुक प्रस्ताव को स्वीकार किया, मुहम्मद ने उदार युवाओं के चारों ओर अपनी बाहों को फेंक दिया, और उसे अपने बस्से पर दबा दिया "और कहा," मेरे भाई, मेरे विज़ीर, मेरे अनुयायी को देखो ... सभी को उसके शब्दों को सुनें, और उसकी आज्ञा मानें। " [42] सर रिचर्ड बर्टन ने अपनी 1898 की पुस्तक में भोज के बारे में लिखा, "यह [मुहम्मद] के लिए जीता, अबू तालिब के पुत्र अली के व्यक्ति में एक हज़ार साबर के लायक है।" [43]

मुसलमानों के उत्पीड़न के दौरान
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मक्का में बानू हाशिम के मुसलमानों और बहिष्कार के दौरान, अली मुहम्मद के समर्थन में दृढ़ता से खड़ा था। [44]

मदीना में प्रवास
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मुख्य लेख: हिजरी
622 में, मुहम्मद के यथिब (अब मदीना) के प्रवासन के वर्ष में, अली ने मुहम्मद के बिस्तर पर मुहम्मद पर एक हत्यारा साजिश को रोकने और मुहम्मद पर हत्या की साजिश को रोकने के लिए अपने जीवन को खतरे में डाल दिया ताकि मुहम्मद सुरक्षा से बच सके। [1][30][45] इस रात को लतत अल-मबीत कहा जाता है। कुछ हदीस के मुताबिक, हिजरा की रात को अपने बलिदान के बारे में अली के बारे में एक कविता प्रकट हुई थी, जिसमें कहा गया है, "और पुरुषों में वह है जो अल्लाह की खुशी के बदले में अपने नफ (स्वयं) को बेचता है।" [46]

अली ने साजिश से बच निकला, लेकिन मुहम्मद के निर्देशों को पूरा करने के लिए मक्का में रहने से फिर से अपने जीवन को खतरे में डाल दिया: अपने मालिकों को सुरक्षित रखरखाव के लिए मुहम्मद को सौंपे गए सभी सामान और संपत्तियों को बहाल करने के लिए। 'अली फिर मदीना के पास फातिमाह बिन असद (उनकी मां), फातिमा बिन मुहम्मद (मुहम्मद की बेटी) और दो अन्य महिलाओं के साथ गईं। [2][30]

मदीना में जीवन
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मुहम्मद का युग
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जब वह मदीना चले गए तो अली 22 या 23 वर्ष का था। जब मुहम्मद अपने साथी के बीच भाईचारे के बंधन बना रहे थे, तो उन्होंने अली को अपने भाई के रूप में चुना। [2][30][47] दस वर्षों तक मुहम्मद ने मदीना में समुदाय का नेतृत्व किया, अली उनकी सेना में उनकी सेवा में बहुत सक्रिय थे, उनकी सेनाओं में सेवा करते थे, हर युद्ध में अपने बैनर के भालू, अग्रणी दल छापे पर योद्धाओं, और संदेश और आदेश ले जाने। [48] मुहम्मद के लेफ्टिनेंटों में से एक के रूप में, और बाद में उनके दामाद, अली मुस्लिम समुदाय में अधिकार और खड़े थे। [49]

पारिवारिक जीवन
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यह भी देखें: अहल अल-बैत 623 में, मुहम्मद ने अली को बताया कि भगवान ने उसे अपनी बेटी फातिमा जहर को शादी में अली को देने का आदेश दिया था। [1] मुहम्मद ने फातिमा से कहा: "मैंने तुमसे मेरे परिवार के सबसे प्यारे से शादी की है।" [50] इस परिवार को मुहम्मद द्वारा अक्सर महिमा दिया जाता है और उन्होंने उन्हें मुहहाला और हदीस जैसे घटनाओं में क्लोक के कार्यक्रम के हदीस की तरह अपने अहल अल-बेत के रूप में घोषित किया। उन्हें " शुद्धिकरण की कविता " जैसे कई मामलों में कुरान में भी गौरव दिया गया था। [51][52]

अली के पास चार बच्चे थे जो मुहम्मद के एकमात्र बच्चे फतेमाह से पैदा हुए थे, जो जीवित संतान थे। उनके दो बेटों ( हसन और हुसैन ) को मुहम्मद ने अपने बेटों के रूप में उद्धृत किया था, उनके जीवनकाल में कई बार सम्मानित किया था और "जन्नह के युवाओं के नेताओं" शीर्षक (स्वर्ग, इसके बाद।) [53][54]अली और फातिमा का तीसरा बेटा मुहसीन भी था; हालांकि, मुस्लिम की मृत्यु के बाद अली और फातिमा पर हमला किया गया था जब गर्भपात के परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई थी। हमले के तुरंत बाद फातिमा की मृत्यु हो गई। [55][56][57]

शुरुआत में वे बेहद गरीब थे। अली अक्सर फैतिमा को घरेलू मामलों के साथ मदद करेगा। कुछ सूत्रों के मुताबिक, अली ने घर के बाहर काम किया और फातिमा ने घर के अंदर काम किया, जो मुहम्मद ने निर्धारित किया था। [58] जब मुसलमानों की आर्थिक परिस्थितियां बेहतर हो गईं, तो फातिमा ने कुछ नौकरियां प्राप्त की लेकिन उन्हें अपने परिवार की तरह व्यवहार किया और उनके साथ घर कर्तव्यों का पालन किया। [59]

उनकी शादी दस साल बाद फातिमा की मृत्यु तक चली और उन्हें प्यार और मित्रता से भरा माना जाता था। [60] अली ने फातिमा के बारे में कहा है, "अल्लाह ने, मैंने कभी उसे क्रोधित नहीं किया था या उसे कुछ भी करने के लिए मजबूर नहीं किया था जब तक कि अल्लाह उसे बेहतर दुनिया में नहीं ले जाता। उसने मुझे कभी क्रोधित नहीं किया और न ही उसने मुझे अवज्ञा की कुछ भी में। जब मैंने उसे देखा, तो मेरे दुःख और दुःखों को राहत मिली। " [61][62] हालांकि बहुविवाह की अनुमति थी, अली ने दूसरी महिला से विवाह नहीं किया था, जबकि फातिमा जीवित था, और उसके विवाह से सभी मुस्लिमों के लिए एक विशेष आध्यात्मिक महत्व है क्योंकि इसे मुहम्मद के आस-पास के दो महान आंकड़ों के बीच विवाह के रूप में देखा जाता है। फातिमा की मौत के बाद, अली ने अन्य महिलाओं से विवाह किया और कई बच्चों को जन्म दिया। [1]

सैन्य करियर
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ताबोक की लड़ाई के अपवाद के साथ, अली ने इस्लाम के लिए लड़े सभी युद्धों और अभियानों में हिस्सा लिया। [30] साथ ही उन लड़ाइयों में मानक धारक होने के नाते, अली ने योद्धाओं के पक्षियों को दुश्मन भूमि में छापे पर नेतृत्व किया।

अली ने पहली बार बदर की लड़ाई में 624 में एक योद्धा के रूप में खुद को प्रतिष्ठित किया। उमायाद चैंपियन वालिद इब्न उट्टा को हराकर अली ने लड़ाई शुरू की; एक इतिहासकार ने युद्ध में अली की उद्घाटन जीत को "इस्लाम की जीत का संकेत" बताया। [63] अली ने युद्ध में कई अन्य मक्का सैनिकों को भी हरा दिया। मुस्लिम परंपराओं के मुताबिक अली युद्ध में बीस पच्चीस दुश्मनों के बीच मारे गए, ज्यादातर सातवीं के साथ सहमत हैं; [64] जबकि अन्य सभी मुसलमानों ने संयुक्त रूप से एक और सातवीं की हत्या कर दी। [65]

अली उहूद की लड़ाई में प्रमुख थे, साथ ही साथ कई अन्य लड़ाईएं जहां उन्होंने एक विभाजित तलवार की रक्षा की जिसे जुल्फिकार कहा जाता है। [66] मुहम्मद की रक्षा करने की उनकी विशेष भूमिका थी जब अधिकांश मुस्लिम सेना उहूद [1] की लड़ाई से भाग गई थी और कहा गया था "अली को छोड़कर कोई बहादुर युवा नहीं है और कोई तलवार नहीं है जो जुल्फिकार को छोड़कर सेवा प्रदान करती है।"[67] वह खाबर की लड़ाई में मुस्लिम सेना के कमांडर थे। [68] इस युद्ध के बाद मोहम्मद ने अली को असदुल्ला नाम दिया (अरबी : أسد الله), जिसका अर्थ है "भगवान का शेर"। अली ने 630 में हुनैन की लड़ाई में मुहम्मद का भी बचाव किया। [1]

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