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डर का असर, अमरीका ने किया इराक़ से अपने सैनिकों को निकालने का एलान



ईरान और लेबनान के हिज़्बुल्लाह आंदोलन के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह की ओर से अमरीकी सैनिकों को निशाना बनाए जाने के एलान के चौबीस घंटे के भीतर अमरीका ने इराक़ से अपने सैनिक वापस बुलाने का फैसला कर लिया।
रायटर्ज़ न्यूज़ एजेन्सी के अनुसार दाइश के खिलाफ अमरीकी गठबंधन ने सोमवार कहा है कि वह अगले कुछ दिनों और हफ्तों में इराक़ से निकल रहा है।  अमरीकी गठबंधन ने एक पत्र द्वारा इराक़ी सरकार को इस फैसले की सूचना दी है और यह पत्र रायटर्ज़ को दिखाया गया है।अमरीकी गठबंधन की ओर से इराक़ी सैन्य अधिकारी को लिखे गये पत्र में कहा गया है कि सर! इराक़ की अंखडता व संप्रभुता की रक्षा करते हुए और इराक़ी संसद और प्रधानमंत्री की मांग के देखते हुए गठबंधन, अपने सैनिकों को वापस बुला रहा है जिसकी तैयारी के लिए कुछ दिनों और हफ्तों की मोहलत की ज़रूरत है। 
रायटर्ज़ ने इराक़ के रक्षा मंत्रालय के एक सूत्र से इस बात की पुष्टि करा ली है कि यह पत्र इराक़ के संबंधित रक्षा अधिकारी को मिल गया है। 
पत्र में कहा गया है कि हम अपने देश की प्रभुसत्ता के लिए किये गये आपके फैसले के बाद हमें देश छोड़ने के आप के आदेश का सम्मान करते हैं।
याद रहे इराक़ी संसद ने रविवार को एक कानून बना कर इस देश में अमरीका और किसी भी दूसरे देश के सैनिकों की उपस्थिति को गैर कानूनी घोषित कर दिया और  सभी विदेशी सैनिकों से देश छोड़ने को कहा। 
अमरीकी विदेशमंत्री माइक पोम्पियो ने इराक़ी संसद से इस आदेश को अस्वीकारीय बताया थ और अमरीकी राष्ट्रपति ने इराक़ पर कड़े प्रतिबंध लगाने की धमकी देते हुए अमरीकी छावनियों को बनाने में आने वाले भारी खर्चे की मांग की थी।
लेबनन के हिज़्बुल्लाह आंदोलन के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने रविवार को अपने एक भाषण में ईरान के महान जनरल शहीद कास़िम सुलैमानी की हत्या का बदला लेने की घोषणा करते हुए कहा था कि अमरीकी सैनिक पैंरो पर चल कर आएंगे और ताबूतों में वापस अमरीका जाएंगे

Sawabe wazu.

इमाम हसन असकरी अ.स. की ज़िंदगी पर एकनिगाह




इमाम हसन असकरी अ.स. की ज़िंदगी पर एकनिगाह 

शियों के गयारहवें इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए, चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए


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विलायत पोर्टल: हमेशा से यह सुन्नत रही है कि ऐसे बुज़ुर्गों की ज़िंदगी और उनके किरदार ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है जिनमें इंसानी पहलू मौजूद रहा हो, उनमें अल्लाह के भेजे हुए नबी और अलवी मकतब के रहनुमा वह ऐसे लोग हैं जो अल्लाह की ओर से सारे इंसानों के लिए बेहतरीन आइडियल बनाए गए हैं।
शियों के गयारहवें इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए, चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।
इमाम हसन असकरी अ.स. की रणनीति
इमाम हसन असकरी अ.स. ने हर तरह के दबाव और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद दीन की हिफ़ाज़त और इस्लाम विरोधी विचारधारा का मुक़ाबला करने के लिए अनेक राजनीतिक, सामाजिक और इल्मी कोशिशें अंजाम देते रहे और अब्बासी हुकूमत की इस्लाम की नाबूदी की साज़िश को नाकाम कर दिया, आपकी इमामत के दौरान कुछ अहम रणनीतियां इस तरह थीं......
इस्लाम की हिफ़ाज़त के लिए इल्मी कोशिशें, विरोधियों के कटाक्ष का जवाब, हक़ीक़ी इस्लाम और सही विचारधारा का प्रचार, ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम, शियों की विशेष कर क़रीबी साथियों की जो हर तरह का ख़तरा मोल ले कर हर समय इमाम अ.स. के इर्द गिर्द रहते थे उनकी माली मदद करना, कठिनाईयों से निपटने के लिए बुज़ुर्ग शियों का हौसला बढ़ाना और उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को मज़बूत करना, शियों के अक़ीदों और इमामत का इंकार करने वालों के लिए इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करना और अपने बेटे इमाम महदी अ.स. की ग़ैबत के लिए शियों की फ़िक्र को तैयार करना।
इल्मी कोशिशें
हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में हालात की ख़राबी और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी पाबंदियों की वजह से आप समाज में अपने इलाही इल्म को नहीं फैला सके लेकिन इन सब पाबंदियों के बावजूद ऐसे शागिर्दों की तरबियत की जिनमें से हर एक अपने तौर पर इस्लामी मआरिफ़ और इमाम अ.स. के इल्म को लोगों तक पहुंचाने में अहम रोल निभाता रहा, शैख़ तूसी र.ह. ने आपके शागिर्दों की तादाद सौ से ज़्यादा नक़्ल की है, जिनमें अहमद इब्ने इसहाक़ क़ुम्मी, उस्मान इब्ने सईद और अली इब्ने जाफ़र जैसे बुज़ुर्ग शिया उलमा शामिल हैं, कभी कभी मुसलमानों और शियों के लिए ऐसी मुश्किलें और कठिनाईयां पेश आ जाती थीं कि उन्हें केवल इमाम हसन असकरी अ.स. ही हल कर सकते थे, ऐसे मौक़ों पर इमाम अ.स. अपने इमामत के इल्म और हैरान कर देने वाली तदबीरों से कठिन से कठिन मुश्किल को हल कर दिया करते थे।
शियों का आपसी संपर्क
इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में अनेक इलाक़ों और कई शहरों में शिया फैल चुके थे और कई इलाक़ों में अच्छी ख़ासी तादाद में थे जैसे कूफ़ा, बग़दाद, नेशापुर, क़ुम, मदाएन, ख़ुरासान, यमन और सामर्रा शियों के बुनियादी मरकज़ में से थे, शिया इलाक़ों का इस तरह तेज़ी से फैलने और कई इलाक़ों में शियों का अच्छी ख़ासी तादाद में होने को देखते हुए ज़रूरी था कि उनके बीच आपस में एक दूसरे से संपर्क बनाए रहें ताकि उनकी दीनी और सियासी रहनुमाई हो सके और उन सभी को एक साथ मंज़िल तक पहुंचाया जा सके, यह ज़रूरत इमाम मोहम्मद तक़ी अ.स. के दौर ही से महसूस हो रही थी और वकालत से संबंधित सिस्टम को ईजाद कर के और अलग अलग इलाकों में वकीलों को भेज कर इस काम को शुरू किया जा चुका था, इमाम हसन असकरी अ.स. ने भी इसी को जारी रखा, जैसाकि तारीख़ी हवाले से यह बात साबित है कि आपने शियों के अहम और बुज़ुर्ग लोगों में से अपने वकीलों को चुन कर उनको अलग अलग इलाक़ों में भेज दिया।
ख़त और दूत (क़ासिद) का सिलसिला
वकालत का सिस्टम क़ायम करने के अलावा इमाम हसन असकरी अ.स. अपने सफ़ीर और क़ासिद को भेज कर भी अपने शियों और मानने वालों से संपंर्क करते थे और इस तरह उनकी मुश्किलों को दूर करते थे, अबुल अदयान (जोकि आपके क़रीबी सहाबी थे) के काम उन्हीं कोशिशों का नतीजा हैं, वह इमाम के ख़तों को आपके शियों तक पहुंचाते और उनके ख़तों, सवालों, मुश्किलों, ख़ुम्स और दूसरे माल शियों से लेकर सामर्रा में इमाम अ.स. तक पहुंचाते थे।
क़ासिद और दूत के अलावा इमाम अ.स. ख़तों द्वारा भी अपने शियों से संपर्क में रहते थे और उनकी अपने ख़तों से हिदायत करते थे, इसकी मिसाल इमाम अ.स. का वह ख़त है जो आपने इब्ने बाबवैह र.ह. (शैख़ सदूक़ र.ह. के वालिद) को लिखा था, इसके अलावा इमाम अ.स. ने क़ुम और आवह के शियों को भी ख़त लिखे थे जिनका मज़मून शिया किताबों में मौजूद है।
ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम
इमाम हसन असकरी अ.स. सारी पाबंदियों और हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद कुछ ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम उठा कर शियों की रहनुमाई करते रहते थे, और आपके यह राजनीतिक क़दम दरबारी जासूसों से इसलिए छिपे रहते थे क्योंकि आप बहुत ही सूझबूझ से वह क़दम उठाते थे, जैसे आपके बहुत क़रीबी सहाबी उस्मान इब्ने सईद का तेल की दुकान की आड़ में इमाम अ.स. का पैग़ाम शियों तक पहुंचाना, इमाम हसन असकरी अ.स. के शिया जो भी चीज़ या माल इमाम अ.स. तक पहुंचाना चाहते थे वह उस्मान को दे दिया करते थे और वह यह चीज़ें घी के डिब्बों और तेल की मश्कों में छिपा कर इमाम अ.स. तक पहुंचा दिया करते थे, इमाम अ.स. की कड़ी निगरानी के बावजूद दुश्मन की नाक के नीचे ऐसी बहादुरी वाले क़दम उठाने की वजह से आपकी 6 साल की इमामत अब्बासियों के ख़तरनाक क़ैदख़ानों में गुज़री।
शियों की माली मदद
आपका एक और अहम क़दम शियों की विशेष कर क़रीबी असहाब की माली मदद करना था, इमाम अ.स. के कुछ असहाब माली मुश्किल लेकर आते थे और आप उनकी मुश्किल को दूर करते थे, आपके इस अमल की वजह से वह लोग माली परेशानियों से घबरा कर हुकूमती और दरबारी इदारों की ओर आकर्षित होने से बच जाते थे।
इस बारे में अबू हाशिम जाफ़री कहते हैं कि मैं आर्थिक तंगी से गुज़र रहा था, मैंने सोंचा कि एक ख़त द्वारा अपने हाल को इमाम हसन असकरी अ.स. तक पहुंचाऊं, लेकिन मुझे शर्म आई और मैंने अपना इरादा बदल दिया, जब मैं घर पहुंचा तो देखा कि इमाम अ.स. ने मेरे लिए 100 दीनार भेजे हुए हैं और एक ख़त भी लिखा है कि जब कभी तुम्हें ज़रूरत हो तो शर्माना नहीं, हमसे मांग लेना इंशा अल्लाह तुम्हारी मुश्किल दूर हो जाएगी।
बुज़ुर्ग शियों और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करना
इमाम हसन असकरी अ.स. की एक बहुत अहम राजनीतिक गतिविधि यह थी कि आप शियों के अज़ीम मक़सद को हासिल करने की राह में आने वाली तकलीफ़ों और अब्बासी हाकिमों की साज़िशों का मुक़ाबला करने के लिए शिया बुज़ुर्गों की सियासी हवाले से तरबियत करते और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करते थे, चूंकि शिया बुज़ुर्ग शख़्सियतों पर हुकूमत का सख़्त दबाव होता था इसलिए इमाम अ.स. हर एक को उसके विचारों और उसकी फ़िक्र के हिसाब से उसका हौसला बढ़ाते और उनकी रहनुमाई करते थे ताकि कठिन समय में उनका सब्र और हौसला बना रहे और वह अपनी राजनीतिक ज़िम्मेदारियों को सही तरीक़े से निभा सकें, इस हवाले से इमाम अ.स. ने जो ख़त अली इब्ने हुसैन इब्ने बाबवैह क़ुम्मी र.ह. को लिखा उसमें फ़रमाते हैं कि हमारे शिया कठिन दौर से गुज़रेंगे यहां तक कि मेरा बेटा ज़ुहूर करेगा, यही मेरा वह बेटा होगा जिसके बारे में अल्लाह के रसूल ने बशारत दी है कि वह ज़मीन को अदालत और इंसाफ़ से इस तरह भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म और अत्याचार से भरी होगी।
इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल
हमारे सभी इमाम अल्लाह से संपंर्क में रहने की वजह से इल्मे ग़ैब रखते थे और ऐसे हालात में जब इस्लाम की सच्चाई या मुसलमानों के सामाजिक फ़ायदे ख़तरे में पड़ जाएं तो उस समय उस इल्म का इस्तेमाल करते थे, हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. की ज़िंदगी को अगर देखा जाए तो यह बात अच्छी तरह सामने आ जाएगी कि आपने दूसरे इमामों को देखते हुए इल्मे ग़ैब का ज़्यादा इज़हार किया है, और उसकी सीधी वजह उस दौर के भयानक हालात और ख़तरनाक माहौल था, क्योंकि जबसे आपके वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. को सामर्रा ले जाया गया तबसे आप कड़ी निगरानी में थे, अब्बासी हुकूमत की सख़्तियों और निगरानी की वजह से हालात ऐसे हो गए थे कि आप अपने बाद आने वाले इमाम अ.स. को खुल कर नहीं पहचनवा पा रहे थे, जिसकी वजह से कुछ शियों के दिलों में शक बैठने लगा था, इमाम अ.स. उन शक और मन की शंकाओं को दूर करने और उस दौर के ख़तरों से अपने असहाब को बचाने के लिए और गुमराहों की हिदायत करने के लिए आप इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करते हुए ग़ैब की ख़बरें दिया करते थे।
इस्लामी तालीमात की हिफ़ाज़त
हुकूमतों द्वारा इमामों का आम मुसलमानों से संपंर्क न बनाने देने के पीछे का राज़ यह है कि कुछ हाकिम चाहते थे कि इस्लामी ख़ेलाफ़त की आड़ में आम मुसलमानों को अपनी ओर खींच लिया जाए और फिर जिस तरह चाहें और जो चाहें अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ उनको रखा जाए, नतीजे में जवानों के अक़ीदों को कमज़ोर किया जाता था और उनको ऐसे बातिल अक़ीदों और नीच सोंच में उलझा देते थे ताकि आम मुसलमानों को गुमराह करने का प्लान कामयाब हो सकें।
इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर एक कठिन दौर था जिसमें अनेक तरह की फ़िक्रें और विचारधाराएं इस्लामी समाज के लिए ख़तरा बन चुकी थीं, लेकिन आपने अपने वालिद और दादा की तरह एक पल के लिए भी इस साज़िश से ध्यान नहीं हटाया बल्कि पूरी सावधानी और गंभीरता के साथ इस्लाम की ग़लत तस्वीर बताने वालों, सूफ़ियत, ग़ुलू करने वालों, शिर्क और भी इसके अलावा बहुत सारी ख़ुराफ़ात और वाहियात जो मज़हब के नाम पर दीन का हिस्सा बताई जा रही थीं उन सबका मुक़ाबला किया और इनमें से किसी को भी अपने दौर में पनपने नहीं दिया।
इमाम हसन असकरी अ.स. और इस्लाम का ज़िंदा बाक़ी रखना
अब्बासी हुकूमत दौर और ख़ास कर इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर उन सबसे बुरे दौर में से एक था जिसमें हाकिमों की अय्याशी, उनके ज़ुल्म और अत्याचार, दीनी मामलात से बे रुख़ी, और दूसरी ओर मुसलमानों के इलाक़ों में ग़रीबी के फैलने की वजह से दीनी वैल्यूज़ ख़त्म हो चुकी थीं, इसलिए अगर इमाम हसन असकरी अ.स. द्वारा दिन रात की जाने वाली मेहनतें और कोशिशें न होतीं तो अब्बासियों की सियासत की वजह से इस्लाम का नाम भी लोगों के दिमाग़ से मिट जाता, हालांकि इमाम अ.स. ख़ुद अब्बासी हाकिमों की कड़ी निगरानी में थे लेकिन आपने हर इस्लामी शहर में अपने वकीलों को तैनात कर रखा था जिनके द्वारा मुसलमानों के हालात मालूम करते रहते थे, कुछ शहरों की मस्जिदें और इमारतें भी इमाम अ.स. के हुक्म से बनाई गईं, जिसमें ईरान के क़ुम शहर में मौजूद इमाम हसन असकरी (अ.स.) मस्जिद शामिल है, इससे पता चलता है कि आप अपने वकीलों और इल्मे इमामत से मुसलमानों की हर तरह की मुश्किल और उनकी पिछड़ेपन को जानते और उसे दूर करते थे।

इराक ने यूरोप की मांग ठुकराई, 13 हज़ार वहाबी आतंकियों को देश में आने से रोका ।

वहीँ दूसरी ओर सीरिया की आधिकारिक न्यूज़ एजेंसी साना ने कहा है कि उत्तरी सीरिया में तुर्की के हमलों के साथ ही अमेरिका इस क्षेत्र से आईएसआईएस के आतंकियों को निकाल कर ले जाता रहा है ।तुर्की के हमलों के बाद से अब तक अमेरिका इस क्षेत्र से आईएसआईएस से जुडी 1500 महिला आतंकियों को निकाल कर ले जा चुका है ।
विलायत पोर्टल  : प्राप्त जानकारी के अनुसार इराक ने यूरोपीय प्रतिनिधि दल की उस मांग को ठुकरा दिया है जिसमे यूरोपीय देशों ने बगदाद से मांग की थी कि बगदाद वहाबी आतंकी संगठन आईएसआईएस एवं अन्य आतंकी समूहों के 13000 लोगों को इराक में आने की अनुमति दे और यहीं पर उनके खिलाफ न्यायिक कार्रवाई हो ।
इराक के एक वरिष्ठ राजनेता ने कहा कि बगदाद ने यूरोपीय दल की मांग को अनुचित बताते हुए कहा कि सीरिया में बंदी बनाए गए इन आतंकियों ने इराक की धरती पर कोई काण्ड नहीं किया अतः उन पर इराक में मुक़दमा चलने का कोई औचित्य नहीं है ।
वहीँ दूसरी ओर सीरिया की आधिकारिक न्यूज़ एजेंसी साना ने कहा है कि उत्तरी सीरिया में तुर्की के हमलों के साथ ही अमेरिका इस क्षेत्र से आईएसआईएस के आतंकियों को निकाल कर ले  जाता रहा है ।
तुर्की के हमलों के बाद से अब तक अमेरिका इस क्षेत्र से आईएसआईएस से जुडी 1500 महिला आतंकियों को निकाल कर ले जा चुका है ।

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